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ईशावास्य

ईशावास्य (हिंदी भावानुवाद) Ishavasya (English) ॐ पूर्ण मदः पूर्ण मिदं पूर्णात पूर्ण मुदचत्ये, पूर्णस्य पूर्ण मादाये पूर्ण मेवावशिश्यते ॥ वह सूक्ष्म जगत पूर्ण है, यह स्थूल जगत पूर्ण है, पूर्ण परमेश्वर से ही इस पूर्ण जगत का उदय होता है, पूर्ण परमेश्वर पूर्ण जगत रूप ले लेने पर भी वह अपने सूक्ष्म स्वरुप में पूर्ण ही शेष रहता है| Om ! That is full; this is full, (for) from the full the full (indeed) arises. When the full is taken from the full, what remains is full indeed. Om ! Peace ! Peace ! Peace ! ईशावास्यं इदं सर्वं यत् किञ्च जगत्यां जगत। तेन त्यक्तेन भुञ्जिथाः मा गृधः कस्य स्विद् धनम् ॥१॥ जगत में जो कुछ भी चलने वाले और स्थिर रहने वाले प्राणी हैं वे सब ईश्वरके द्वारा व्याप्त हैं। तुम त्याग पूर्वक ही भोग करो, किसी अन्य के धन का लोभ न करो। Om. All this should be covered by the Lord, whatsoever moves on the earth. By such a renunciation protect (thyself). Covet not the wealth of others. कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छत समाः। एवं त्वयि नान्यथेतो स्ति न कर्म लिप्यते नरे ॥२॥ इस संसार में कर...

in part 6

मैंने अपने जीवन के इक्कीस साल एक शक्तिशाली क्रिया – शांभवी महामुद्रा – को रूपांतरित करने में लगाए हैं, ताकि उसे आज की दुनिया में बड़ी संख्या में लोगों को सिखाया जा सके। कुछ खास पहलुओं को, जिससे लोगों को स्वयं या दूसरों को हानि पहुँच सकती थी, या जिससे उनके आसपास के तत्त्व प्रभावित हो सकते थे, उन्हें सुरक्षित तरीके से निकाल दिया है, ताकि उसके शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक लाभ ही बाकी रह जाएँ। उन दो दशकों के दौरान मैं जानबूझकर हर तरह की सार्वजनिक पहुँच से दूर रहा, क्योंकि मेरा पूरा ध्यान मुख्यतया इस क्रिया के पुनर्गठन पर केंद्रित था, ताकि यह बिना किसी प्रतिकूल प्रभाव के व्यापक रूप से प्रदान की जा सके। एक संपूर्ण मार्ग के रूप में क्रिया-योग सिर्फ उन लोगों के लिए महत्त्वपूर्ण है, जो रहस्यमय आयाम में खोज करने में रुचि रखते हैं। अगर आपकी रुचि सिर्फ खुशहाली में है, या आप बस आत्मज्ञान चाहते हैं, तो क्रिया को एक छोटे स्तर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन क्रिया-योग को एकमात्र मार्ग की तरह अपनाने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि इसके लिए बहुत अधिक परिश्रम की आवश्यकता है। अगर आप बिना किसी मार्गदर्...

in part 5

प्रेम-मंत्र प्रेम के बारे में आपका क्या कहना है? क्या बिना शर्त प्रेम जैसी कोई चीज़ होती है? क्या यह दो इंसानों के बीच सचमुच हो सकता है? ऐसे सवाल अकसर पूछे जाते हैं। एक दिन शंकरन पिल्लै एक पार्क में गए। उन्होंने पत्थर की एक बेंच पर एक सुंदर युवती को बैठे देखा। वे भी उसी बेंच पर बैठ गए। कुछ मिनटों के बाद वे उसके पास आ गए। वह दूर खिसक गई। उन्होंने कुछ मिनट इंतजार किया, और फिर उस युवती के और पास आ गए। वह फिर से दूर खिसक गई। जब उन्होंने फिर ऐसा किया, तो वह बेंच के बिलकुल किनारे पर आ गई। वे उसके एकदम करीब आ गए और अपनी बाँह उसके गले में डाल दी, युवती ने उनका हाथ धकेल दिया। तब वे घुटनों के बल बैठ गए, एक फूल तोड़ा और उसे युवती को देते हुए कहा, ‘आई लव यू। मैं तुमसे इतना प्यार करता हूँ, जितना मैंने अपने जीवन में आज तक कभी किसी से नहीं किया।’ सूरज डूब रहा था। उनके हाथ में फूल था। उन्होंने उसे प्रेम-याचना की दृष्टि से देखा। सबसे बढ़कर, माहौल बिलकुल सही था। वह पिघल गई। उसके बाद प्रकृति ने अपना रंग दिखाया और दोनों एक-दूसरे के साथ घुल-मिल गए। शाम रात में गहरा गई। शंकरन पिल्लै अचानक उठ खड़े हुए और बोले, ‘...