अकामान् कामयति यः कामयानान् परित्यजेत्। बलवन्तं च यो द्वेष्टि तमाहुर्मूढचेतसम्।।37।। जो व्यक्ति अपने हितैषियों को त्याग देता है तथा अपने शत्रुओं को गले लगाता है और जो अपने से शक्तिशाली लोगों से शत्रुता रखता है, उसे महामूर्ख कहते हैं। ܀܀܀
प्रश्नोत्तर रत्न मालिका श्रीमद् आद्य शंकराचार्यजी की रचना है। जिसमें १८१ प्रश्नोत्तर सहित ६७ ल्लोक है। उसमें भी प्रथम और अंतिम ललोक की रचना उनके शिष्यों की है । प्रश्नोत्तर के रूपमें यह रचना हमारे जीवन एवं वैदिक धर्म के सनातन मूल्यों को प्रस्तुत करती है, जो देश, काल एवं परिस्थिति से परे है । जीवन के कठिन मार्ग पर चलते हुए ये सभी सिद्धांत हमें सही पथ दिखाते हुए हमारा जीवन उन्नत करते हैं । श्रीमद् आद्य शंकराचार्यजी को कोटि कोटि वंदन! ॥ प्रश्नोत्तर रत्नमालिका ॥ कः खलु नालंक्रियते दृष्टादृष्टार्थसाधनपटीयान् । अमुया कण्ठस्थितया प्रश्नोत्तररत्नमालिकया ॥ जीवन के दृश्य एवं अदृश्य ध्येय को पाने के लिए आवश्यक ऐसी यह प्रश्नोत्तर रत्न मालिका को पहन के (याद कर के) कौन खुद को अलंकृत नहीं करना चाहेगा ? ॥ प्रश्नोत्तर रत्नमालिका ॥ भगवन् किमुपादेयं? - गुरुवचनम् । हेयमपि किम्? - अकार्यम् । को गुरुः अधिगततत्त्वः शिष्यहितायोद्यतः सततम् । क्या स्वीकार्य है ? - गुरु के वचन (शिक्षा) । क्या त्याज्य है ? जो धर्म के विरुद्ध है । गुरु कौन है ? - जिसने सत्य को पा लिया है और जो सदैव अपने शिष्य के लिए सही सोचता है ।...
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