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Showing posts from January, 2021

Who Got Us Our Freedom?

Who Got Us Our Freedom? This book is an attempt to rescue the history of our Freedom Struggle from some highly motivated colonial and post-colonial myth making that is patently false and tendentious and that seeks to glorify the “benign” nature of colonial rule in India and keep us forever in its psychological thrall. Most educated Indians tend to view it as an era of emancipation of sorts in our history that served to unite a disparate and ever squabbling people into a cohesive and governable nation state. This was the colonial narrative that had so patently and successfully been imposed on our people. Unfortunately it is still believed by a bulk of our educated population. As long as we do not cast away these psychological crutches, we shall never actualise our full potential as a great civilisational state that is heir to 8,000 years of a glorious history. This book therefore begins with a seminal and straightforward question—Who really got us our freedom? Was it the INA of Netaji S...

The Third Eye Chapter 1

अध्याय एक गृह निवास के प्रारम्भिक दिन ऐ! ऐ! चार साल के बच्चे होकर भी तुम घोड़े पर ठीक से नहीं बैठ सकते, तुम कभी आदमी नहीं बन पाओगे, तुम्हारे श्रेष्ठ पिता क्या कहेंगे ? ऐसा कहते हुए बूढ़े त्सू ने पोनी (खच्चर) को पीछे से, जोर की थाप मारी और उसके भाग्यहीन घुड़सवार को पीठ पर ठोका और गुस्से से धूल में थूका। पोटाला की स्वर्णिम छतें और गुम्बज सुनहरी धूप में चमक रहे थे नजदीक ही सर्प मंदिर (snake temple) की झील के नीले पानी में बतखों के तैरने के निशान, लहर बने हुए थे पथरीले रास्ते के साथ-साथ, बहुत दूर से, धीमे चलने वाले याकों, जो ल्हासा से बाहर जा रहे थे, के सवारों की ऊँची आवाजें और चीखें सुनाई दे रही थीं। पड़ौस में से छाती को दहला देने वाली बम, बम, की तुरही (trumphet) की गहरी आवाजें आ रही थीं, जो मैदान में भीड़ से अलग हटकर अभ्यासार्थी संगीतज्ञ लामाभिक्षुओं के द्वारा की जा रही थीं । परंतु मेरे पास रोजाना घटने वाली ऐसी चीजों के लिए समय नहीं था । मेरा मुश्किल और गंभीर काम अनिच्छुक पोनी की पीठ के ऊपर सवार होना था । नक्किम ( पोनी) के दिमाग में कुछ और था। वह अपने सवार से, घास चरने, धूल में लेटने तथा...

The Third Eye

प्रकाशक का अग्रेषण  तिब्बती लामा की ये आत्मकथा, उनके अनुभवों का अद्वितीय लेखाजोखा है, जिसको सुनिश्चित करना अपरिहार्य रूप से कठिन है । लेखक के कथनों की पुष्टि करने के इस प्रयास में, प्रकाशक ने, उनकी पाण्डुलिपि को, लगभग 20 प्रबुद्ध एवं अनुभवी पाठकों को प्रस्तुत किया, जिनमें से कुछ, इस विषय में विशिष्ट ज्ञान रखने वाले थे । उनके मत इतने विरोधाभासी थे कि कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकल सका। कुछ ने, कुछ खण्डों की प्रमाणिकता पर प्रश्नचिन्ह लगाए, जबकि दूसरों ने, कुछ दूसरों पर। जो एक विशेषज्ञ द्वारा बिना किसी प्रश्नचिन्ह के स्वीकार कर लिया गया था वही दूसरे द्वारा नकार दिया गया। कैसे भी, प्रकाशकों ने अपने आप से पूछा कि, क्या कोई ऐसा विशेषज्ञ है, जिसने उच्चतम विकसित रूप में, तिब्बत के लामा का प्रशिक्षण प्राप्त किया हो ? क्या कोई ऐसा व्यक्ति है, जो तिब्बती परिवार में पला बढ़ा हो। लोबसाँग रम्पा ने दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत किए कि, वह चुंगकिंग विश्वविद्यालय द्वारा चिकित्सकीय उपाधि धारण करते हैं । उन दस्तावेजों में उनको ल्हासा के पोटाला लामामठ के लामा के रूप में बताया गया है। उनके साथ व्यक्तिगत ब...

Vidur Niti Part 2

अकामान् कामयति यः कामयानान् परित्यजेत्। बलवन्तं च यो द्वेष्टि तमाहुर्मूढचेतसम्।।37।। जो व्यक्ति अपने हितैषियों को त्याग देता है तथा अपने शत्रुओं को गले लगाता है और जो अपने से शक्तिशाली लोगों से शत्रुता रखता है, उसे महामूर्ख कहते हैं। ܀܀܀

Manaskhand part 1

मानसखण्ड (कुमाऊँ—इतिहास, धर्म, संस्कृति, वास्तुशिल्प एवं पर्यटन) प्राचीन भारतीय साहित्य में हिमालय के पांच खण्ड़ों में से एक 'कूर्मांचल' मध्य हिमालय में देवभूमि उत्तराखण्ड राज्य का कुमाऊँ क्षेत्र है। इसे पौराणिक साहित्य में मानसखण्ड कहा गया है। उत्तराखण्ड राज्य में गढ़वाल क्षेत्र (केदारखण्ड) के पूर्व में मानसखण्ड (कुमाऊँ) की स्थिति है। केदारखण्ड व मानसखण्ड का सम्मिलित रूप ही उत्तराखण्ड है। मुख्य रूप से कोसी, सरयू, काली, रामगंगा (पूर्वी), गोरी, लोहावती आदि के प्रवाह वाला यह क्षेत्र प्राचीन काल से ही संत-महात्माओं की तपश्चर्य व सिद्ध भूमि के रूप में विख्यात रहा है। प्राकृतिक समृद्धता के साथ ही संस्कृति, इतिहास, अन्वेषण, मूर्ति-शिल्प, मंदिर-संरचना व तीर्थाटन-पर्यटन की दृष्टि से यह क्षेत्र अत्यन्त महत्वशाली है। इस रहस्यलोक में प्रमुख स्थलों के अतिरिक्त भी अनेक स्थल ऐसे हैं जो खोज का विषय रहे हैं। लेखिका द्वारा इस क्षेत्र का अधिकतम् भ्रमण-अन्वेषण कर अनेक यात्रावृत्तान्तों, जानकारियों, अनुभवों व छायाचित्रों के माध्यम से प्रस्तुत कर मानसखण्ड एक मौलिक, शोधपरक, चिन्तनशील, उद्देश्यपरक सा...