Ram rajye by Rajiv Dixit | book | राम राज्य | Ramayan | रामायण
गांधी जी ने "भारत में राम-राज्य स्थापित हो" इस पर बहुत कुछ उन्होंने लिखा व बोला लेकिन जब जब गांधीजी के सामने यह प्रश्न आया कि आपकी जो कल्पना है रामराज्य की है वह क्या है? तो गांधी जी ने बहुत सहजता से उत्तर दिया कि जो भगवान श्रीराम ने कहा वही, अब भगवान श्रीराम ने रामराज के बारे में, अपने राज्य के बारे में कहां कुछ कहा इस दृष्टि से बहुत दिन मैं खोजता रहा और बहुत सारी राम कथा के जो विद्वान लोग हैं, मर्मज्ञ हैं, उनसे मिलता रहा कि भगवान श्रीराम ने रामराज्य के बारे में क्या कहा?
ज्यादातर जगह मुझे निराशा हाथ लगी जितने यह प्रश्न लेकर गया कि भगवान श्रीराम ने रामराज्य के बारे में क्या कहा अपनी राज्य के बारे में क्या कहा रामराज्य होता कैसा है? उसकी सेना कैसी होती है? उसकी अर्थव्यवस्था कैसी होती है? उसके नियम कायदे कानून कैसे होते हैं? उसकी राजनीति क्या है? उसकी सीमाएं कैसी हैं? ऐसे प्रश्नों को लेकर जब-जब मैं साधु-संतों से मिलता रहा तो निराशा ही हाथ लगी।
मैंने फिर पढ़ना शुरू किया सबसे पहली रामकथा मैंने पढ़ी तो श्रीरामचरितमानस और वह पढ़ने के पीछे तो बड़े आधार थे, सबसे बड़ा आधार यह था कि मेरी जो मां है वह हर दिन श्री रामचरितमानस के सुंदरकांड का पाठ करती हैं हर दिन यह उनका दैनिक कर्म है और जब तक वह सुंदरकांड का पाठ नहीं करती है तब तक वह ना खाना बनाती है ना किसी को खिलाती है ना खाने देती हैं, तो कानों में उनके शब्द गूंजते रहे बचपन से मैं भी सुंदरकांड पढ़ता रहा मां के माध्यम से, कभी-कभी उन्होंने मुझे पढ़ने के लिए भी बिठाया हमारे घर में एक पुरानी परंपरा सी है बहुत साल से चल रही है कि साल में एक बार श्री रामचरितमानस का पाठ होता है। 24 घंटे का जो अखंड पाठ होता है उसमें भी मैं बहुत दिन शामिल रहा बहुत दिन श्री रामचरितमानस का पाठ करने के बाद सोचा कुछ और भी पढ़ा जाए तो श्री वाल्मीकि रामायण पढ़ी उन्होंने भगवान श्री राम की कथा को जिस तरीके से कहा है या लिखा है वह गोस्वामी तुलसीदास जी की तुलना में बहुत अलग है, मेरे एक बहुत नजदीकी और जिनको मैं बहुत मानता हूं अपने जीवन में गुरु है श्री धर्मपाल जी उनको एक बार ने चर्चा की तो श्री धर्मपाल जी ने कहा कि देखो अगर तुम रामराज्य को ही समझना चाहते हो राम कथा में से भारत में राम कथा लिखने वाले जो दक्षिण भारतीय कवि हैं या बड़े महान लोग हैं उसको भी जरा पढ़ो, तो मैंने पूछा क्यों? तो उन्होंने कहा की उसमें तुम्हें बिल्कुल भिन्न दृष्टि मिलेगी । तो दक्षिण भारत में पिछले कुछ वर्षों से घूमता हूं तो वहां जो राम कथाएं लिखी गई है उनमें सबसे ज्यादा चर्चित और सबसे ज्यादा मानी जाने वाली कंब रामायण है। कंब रामायण तमिल के एक बहुत बड़े ऋषि हुए जैसे हम वाल्मिक का अपने यहाँ स्थान मानते हैं गोस्वामी तुलसीदास का मानते हैं वैसे ही तमिल समाज के लोग कम्ब ऋषि को बहुत मानते हैं । तो कम्ब बहुत बड़े ऋषि हुए उन्होंने श्री राम जी की कथा लिखी है और उसको दक्षिण भारत में कंबन रामायण के रूप में जाना जाता है और मैंने जब श्री कंबन रामायण को पढ़ा तो अद्भुत लगी मुझे ऐसा लगा कि मुझे बहुत सारा ज्ञान आसानी से उसमें में फिर श्री राम जी की कथा एक बहुत बड़े कवि ने भी लिखी है आप सब जानते हैं मध्य भारत के बड़े कवि श्री कालिदास उन्होंने श्री राम जी रामकथा के बादशाह हैं, जिनके पास में की कथा लिखी है रघुवंशम, अद्भुत कथा है वह भी, मैंने पढ़ी बार-बार पढ़ी तो ऐसा करके 8-10 तरह की राम कथा है या श्री राम जी की जीवनी पढ़ी, वह सब पढ़ने के बाद कुछ मेरे समझ में आया वह निचोड़ आपको अगले 1 घंटे में कहना चाहता हूं इस बात का ध्यान रखेंगे कि मैं जो भी कुछ कह रहा हूं वह भारत की वर्तमान समस्याओं के समाधान के संदर्भ में कहूंगा कि राम जी की कथा में से भारत की समस्याओं के समाधान कैसे निकले? आज की जो समस्याएं हम देख रहे हैं अपने देश में राजनीतिक स्तर पर हो, या सामाजिक समस्याएं हो हमारी सभ्यता में आई हुई समस्याओं या संस्कृति के स्तर पर हो इन सभी के समाधान श्री राम जी की कथा में से मुझे दिखाई देते हैं और अब मुझे समझ में आता है कि महात्मा गांधी किस रामराज्य की बात करते थे गांधी जी जब बार-बार कहते थे कि अगर भारत में रामराज्य हो जाए तो सब समस्याओं का समाधान हो जाए अब मुझे उस बात पर बिल्कुल स्पष्टता हैं, और दिखाई देता है कि अगर इस देश को राम राज्य के रास्ते पर ले जाएं तो कैसे समस्याओं का बहुत सरल और सुखद समाधान हमें मिल सकता है । श्री राम जी की कथा आप सब जानते हैं कथा कहने में मैं समय खराब नहीं करूंगा क्योंकि कथा आप सभी ने सुनी हैं, कथा के बीच में जो बिटवीन द लाइंस होती हैं संवाद जो होते हैं जिनमें से कोई बात को पकड़कर विश्लेषण किया जा सकता है, ऐसी कुछ बातें आपके बीच में रखूंगा और श्रीराम के चरित्र में जो बातें मुझे बहुत अच्छी लगती है वह भी आपसे मैं शेयर करने की कोशिश करूंगा मैंने अपने सुविधा की दृष्टि से श्री राम जी की कथा को दो हिस्सों में बांटा या श्रीराम के जीवन को दो हिस्सों में बांटा एक हिस्सा है उनके जीवन का पूर्वाध और दूसरा हिस्सा है उनके जीवन का उत्तरार्थ । पूर्वाध का जो हिस्सा है उनके जन्म लेने से और उनके वन गमन के 1 दिन पहले तक का है । जब उनका जन्म होता है और वह अपने पिता के घर आते हैं अपनी माता कौशल्या की कोख से पैदा होकर तो उस दिन से लेकर और वन गमन के लिए प्रस्थान करें, वो जीवन का उनका पूर्वाध किया हैं, यह मैंने किया है किसी दूसरे का नहीं है, सुविधा की दृष्टि से समझने के लिए । तो उनके जीवन का एक
की सीमा को छोड़कर वन में चले जाते हैं 14 वर्ष के लिए, वो उनके जीवन का उत्तरार्ध हैं, इन्हीं दो हिस्सों में मैंने बांटा है, और जब वह वापस लौटते है रावण पर विजय प्राप्त करके, विभीषण को राजा घोषित करके, वो हिस्सा पूर्वाध हैं। पूर्वाध में, श्रीराम का उसमें बचपन का जो है वह तो ऐसे सभी राजाओं के बेटे बेटियों का है वैसा ही है वह अपने पिता के बहुत लाडले हैं उनके पिता उम्र बहुत ज्यादा ही स्रे रखते हैं मां भी उनको बहुत ज्यादा त्नेह करती है और श्री राम जी के बारे में माना जाता और कहा भी जाता वह खुद अपने मुंह से कहते हैं कि उनके ऊपर श्रीमती कौशल्या का स्नेह तो है कैकयी का विशेष स्नेह हैं, सुमित्रा का भी है लेकिन के कैकयी का विशेष स्नेह हैं, और राम जी इसको बार -बार स्वीकार करते हैं वह मानते हैं कि माता की कोई कृपा मेरे ऊपर हुई है जो मुझे 14 वर्ष का वनवास मिला है जो मेरे जीवन में मैं चाहता हूं वैसा करने का रास्ता खोल रहा हैं, बड़े होते हैं और जैसे ही उनकी उम्र 14 वर्ष के आसपास आती है तो वह राजकाज के काम में रुचि लेना प्रारंभ करते हैं तो उनके पिता श्री दशरथ ने उनको एक जिम्मेदारी सौंपी है जिसको कई वर्ष तक वह निभा रहे हैं बहुत ईमानदारी से और निष्ठा से । जिम्मेदारी क्या है, श्री दशरथ उनको है पूर्वाध और दूसरा है उत्तरार्ध । उत्तरार्ध अयोध्या कहते हैं कि तुम्हें ब्रह्म मुहूर्त में उठना है और प्रजा के बीच में जाकर घुमना हैं, प्रजा के सुख दुख तुम्हें पता करने हैं, ये आकर मुझे या मंत्रिमंडल के सामने रखने हैं, तो भगवान श्री राम या राजकुमार श्री राम बिना किसी तकलीफ के बिना किसी दुख को महसूस किए हुए या बिना किसी रूकावट के हर दिन ब्रह्म मुहर्त में उठते हैं, दैनिक कर्म से निर्वृत्त होते हैं और प्रजा के बीच में घूमते हैं प्रजा से हालचाल पूछते हैं लोगों से बात करते हैं आप क्या महसूस करते हैं? राज्य कैसा चल रहा है? नीतियां कैसी है? राजा के बारे में राजा के राज्य के अधिकारियों के बारे में नियमित रूप से वह फीडबैक लेते हैं। जानकारी लेते हैं, लौटकर आकर दरबार में अपने पिता श्री दशरथ को बताते हैं यह देखो इस प्रश्न पर प्रजा ऐसा सोचती है उस प्रश्न पर ऐसे सोचती है, और दशरथ श्रीराम की दी गई सूचनाओं के अनुसार बहुत सारे फैसले करते हैं कोई नीति बदलनी है तो नीतियों को बदलते हैं, राज्य के किसी अधिकारी को दंड देते है, और दशरथ जी का ऐसा मानना है। कि राम झूठ नहीं बोलता क्योंकि उसमें बहुत सारे सद्गुण हैं उनमें से एक सद्गुण है कि उसके मुंह से झूठ बात कभी निकलती नहीं वह झूठ कभी बोलता नहीं सत्य का आचरण हमेशा रखता है, और उसे कभी छोड़ता नही, तो वह जैसा भी आकर भगवान राम उनको बताते हैं दशरथ जी उनको पूरा का पूरा मान कर के अक्षर से सच है वैसे ही न्याय करते हैं, तो उनका राज्य बहुत अच्छे से चल रहा हैं, प्रजा में काफी सुख है, दुख नहीं है, तकलीफ नहीं है, तो श्री राम जी के 14 वर्ष के आसपास की उम्र का समय इस कार्य में बीत रहा है। माने दशरथ जी के मन में यह अपेक्षा हो रही है कि एक दिन आकर ये अच्छे से गद्दी संभाल लेगा और यह अच्छा राजा सिद्ध होगा और राम जी भी अपना कर्तव्य मानकर उसको नियमित रूप से कर रहे हैं, जब-जब उनके सामने ऐसा कोई मौका आता है की जाओं अपने ननिहाल चले जाओ, या अपने किसी रिश्तेदार के घर चले जाओ, तो किसी न किसी कारण से अपने को रोकते हैं और वह बार-बार कहते कि मैं ननिहाल गया तो यह बड़ा काम रुक जाएगा। इसलिए ननिहाल जाना हर बार टालते हैं, जबकि उनके दो भाई हैं भरत, उनको जब मौका मिले ननिहाल जाने का वह सहर्ष तैयार रहते हैं और उनकी मां भी उनको बहुत प्रेरित करती है कि तुम ज्यादा समय वहीं रहो तो अच्छा है तो ऐसा कुछ अंतर सा दिखाई देता है । बाद में उनके इसी उम्र के आसपास के समय में उस राज्य के एक बड़े गुरु विश्वामित्र जी आकर श्री राम को उनके पिता से मांग लेते हैं, और वह कहते हैं कि देखो वन में यज्ञ करना चाहता हूं और यज्ञ करने के लिए रास्ते में बहुत सारी रुकावटें हैं उन रुकावटों में सबसे बड़ी रुकावट है राक्षस , वे यज्ञ संपन्न नहीं होने देते किसी न किसी कारण कोई न कोई विघ्न डालते रहते हैं, मैं शस्त्र नहीं उठाने की कसम खा चुका हूं वरना मैं स्वयं इन राक्षसों का संहार करने में समर्थ तो मुझे आप अपना बेटा दीजिए जो इन राक्षसों का संहार करें और मेरा यज्ञ सम्पन्न करें । बाद में विश्वामित्र जी दशरथ के दरबार में आकर पूरी कहानी बताते है कि कैसा अत्याचार मचा रखा है, कैसे ये तहस-नहस करने में लगे हुए हैं, आधी-आधी आप जानते हैं कि राजा दशरथ के जो गुरु हैं वह वशिष्ठ हैं, लेकिन विश्वामित्र भी उनसे कुछ नीचे नहीं हैं, वशिष्ठ की राज दरबार में बहुत इज्जत है सम्मान हैं, लेकिन विश्वामित्र का समाज में बहुत सम्मान हैं, उस समय का जो समाज हैं, उस समाज में विश्वामित्र की ऊंचाई बहुत हैं, और राज्य के अंदर वशिष्ठ की मन के ऊंचाई है तो जब विश्वामित्र आते हैं और राम है मैं वशिष्ठ से बात करूंगा और मेरे गुरु अगर कहते हैं तो जरूर शहर जाने की अनुमति है, तो वशिष्ठ से दशरथ जी का संवाद होता है उस संवाद में श्री राम जी भी पहुंच जाते हैं। हालांकि उनको उनके पिता ने अनुमति नहीं दी है कि तुम इसमें शामिल हो लेकिन वह कहते हैं कि मेरे बारे में फैसला हो रहा है इसलिए मेरा रहना आवश्यक है तो वशिष्ट जी कुछ ऐसे इशारे में संकेत करते हैं कि राम का वहां जाना ठीक नहीं है उसकी जरुरत भी नहीं है हम चाहे तो विश्वामित्र के साथ अपनी सेना को भेज देते हैं, यह सेना जाएगी राक्षसों का संहार करके वापस आ जायेगी, इसमें कोई तकलीफ नहीं हैं, तो श्री राम पूछ रहे हैं आप ऐसा क्यों सोचते हैं, तो वशिष्ठ कहते हैं देखों, तुम्हारे पिताजी वृद्ध हो चुके हैं इनको अभी वानप्रस्थी होना है, राजकाज से मुक्त होना है अब तुम्हें इस राज्य को संभालना है तुम्हें यह पद मिलना है इस पर बैठकर इस की गरिमा है, इसकी इज्जत है, प्रतिष्ठा है, वह बढ़ानी है, इसलिए हम तुमको वन नहीं भेज सकते पता नहीं वहां कितना समय लगे दो वर्ष लग जाये, 5 वर्ष लग जाए, हो सकता है ज्यादा समय लग जाए, क्योंकि यह राक्षसों का साम्राज्य खास कर जो मायावी राक्षस हैं उनका साम्राज्य बहुत फैल गया है अयोध्या की सीमा को छोड़कर जितनी सीमाएं वर्णन की गई है वह सब राक्षसों के कब्जे में हैं, तो श्री राम कह रहे हैं कि जीवन में एक ही तो मौका मिल रहा है अपने को साबित करने का और आप वह भी मुझसे छीन लेना चाहते और वह कहते हैं कि मुझे तो लगता है कि विश्वामित्र मेरे बड़े हितैषी हैं आप की तुलना में । तो वशिष्ठ उनसे पूछ रहे हैं कि तुमको ऐसा क्यों लगता है? तो वह कहते हैं कि देखो जब तक मैं राज महल में रहता हूं तो मुझे प्रजा के सुख-दुख का सिर्फ अनुभव हो जाए इसकी मैं कोशिश करता हूं प्रयास पूर्वक | लेकिन अगर मैं राज महल छोड़कर चला जाऊं और जंगल में रहने लगे ऐसे ही जैसे सामान्य प्रजा रहती है तो मुझे प्रयास पूर्वक अनुभव नहीं करना पड़ेगा, आसानी से मुझे अनुभव होने लगेगा, जब तक मैं राजमहल के सुख नहीं छोडूगा, तब तक मुझे दुख का अनुभव नहीं होगा और जब तक दुख का अनुभव नहीं होगा तब तैक न्याय और अन्याय का अंतर मुझे नहीं पता होगा, क्या अभीष्ट है क्या नहीं है यह मैं समझ नहीं पाऊंगा इसलिए मुझे तो जाना ही है अब इस तरह के वाक्य बोलते हैं तो वशिष्ठ बोलते हैं, फिर ठीक है जैसी तुम्हारी इच्छा तो श्री राम जी कहते हैं, मेरी इच्छा नहीं, ईश्वर की ईच्छा, तो वशिष्ठ कहते हैं, कि कैसे?
श्री राम कहते हैं कि, ये ईश्वर की इच्छा हैं कि मैं जाऊ वरना विश्वामित्र ऐसे ही नही आये हैं, विश्वामित्र खुद इतने तपस्वी हैं, बलशाली हैं, जिन्होंने अद्भुत अस्त्रों-शस्तरों का निर्माण किया हैं, वह चाहे तो राक्षसों का पूरा साम्राज्य मिटा सकते वह कह रहे हैं वे कह रहे हैं कि मैनें सकल्प लिया हैं कि मैं राक्षसों के युद्ध नहीं लड़गा, लेकिन वे सकल्प तोड़ भी सकते हैं, लेकिन कुछ विशेष सोच विचाक कर वे मुझे लेने आये हैं तो मैं मानता हूँ ये ईश्वर की कोई इच्छा हैं और वशिष्ठ को कहते हैं कि मैं तो बहुत आस्थावान हूँ, ईशवर के प्रति मेरा परम विश्वास हैं, इसलिए मुझ लगता हैं कि वनगमन जाना ही है तो वो निकलते हैं और अपने साथ अपने भाई लक्ष्मण को ले जाते हैं पहले तो वह सोचते हैं मैं अकेला जाऊं लेकिन लक्ष्मण उनको बहुत जिद करके तैयार करते हैं, नहीं मैं भी आपके साथ को मांगते हैं तो दशरथ कहते हैं कि ठीक
चलूंगा लक्ष्मण की जो मां हैं (सुमित्रा), वो बार-बार यह सिखा रही है कि तुम्हें राम की छाया बन के रहना जीवन के किसी भी मोड़ पर उन्हें छोड़ना नहीं, तुमको उनसे सीखना है अपना ही ईष्ट उनको बनाना है, तो सुमित्रा की शिक्षा बाद में दशरथ का आशीर्वाद दोनों मिलकर विश्वामित्र के साथ जाते हैं, विश्वामित्र के साथ जब वो जा रहे हैं तो सबसे महत्व की बात जो मुझे समझ में आती है वह यह कि जब उनको कहा उनके पिता श्री दशरथ देखो राक्षसों से युद्ध होगा तुम अपनी सेना लेकर जाओ तो श्री राम कहते हैं कि सेना लेकर गया तो क्या फायदा? तो कहते हैं अच्छा ठीक है सेना लेकर नहीं जा रहे हो तो अस्त्र-शस्त्र लेकर जाओ, तो उन्होंने कहा अयोध्या के अस्त्रों से लड़ा तो क्या फायदा? फिर वह कह रहे हैं कि अच्छा ठीक है ना तुम सेना ले जाना चाहते हो, ना अस्त्र-शस्त्र ले जाना चाहते हो, इस राज्य के कुछ बहादुर सैनिक हैं उनको अपने साथ ले जाओ, उन्होंने कहा "नहीं"
यह तो मैं धर्म युद्ध के लिए जा रहा हूं न्याय युद्ध के लिए जा रहा हूं इसलिए जहां जाऊंगा वहीं सेना बनाऊंगा, जहां जाऊंगा वही अस्त्र शस्त्रों का निर्माण करूंगा, जहां जाऊंगा वहीं संसाधन जुटाऊंगा। अब ये जो बात है श्री राम जी की यह आज की बहुत सारी समस्याओं की तरफ इशारा करती है। श्रीराम में लीडरशिप हैं, नेतृत्व करने की क्षमता है। लीडर वह होता है जो जहां जाये वही व्यवस्था बनाए, और आज के भारत की राजनीति में लीडर पैदा होना बंद हो गए हैं अब मैनेजर पैदा होते हैं, मैनेजर माने वह जिसको सब कुछ दिया जाए तब कुछ करें। हमारे आज के नेता पता क्या कहते हैं? टी.ए. चाहिए, डी. ए चाहिए, एच.आर.ए. चाहिए, बेसिक सैलरी चाहिए, इतने करोड़ रूपये का खर्चा चाहिए, ऐ,.सी.
गाड़ियां चाहिए, ऐ.सी फस्ट क्लास का पास चाहिए, हवाई जहाज की नियमित यात्राएं चाहिए, तब जाकर हम करेंगे, तो ये लीड़र नहीं हैं, मैनेजर हैं । क्योंकि किसी कंपनी में हम मैनेजर को नियुक्त करते हैं तो उसके लिए सब सुविधाएं जुटा कर देते हैं एक ऐसी चेंबर होता है, गाड़ी होती है, टेलीफोन होता है, मोबाइल फोन होता है, सब कुछ होता है, सुविधाएं जुटा कर हम देते हैं तब वो काम करता है वह मैनेजर होता है, और बिना सुविधाओं के काम करके जो बना लेता है वो लीडर होता हैं । श्रीराम में लीडरशिप हैं, और उन्हें भरोसा है कि वह कह रहे हैं कि मैं वन में चला गया, आप परेशान मत हो जो वन में रहने वाले लोग हैं उन्हीं के बीच से सेना खड़ी करूँगा, उनके पास जो संसाधन हैं, उन्हीं से अपने काम चला लूंगा, आयोध्या की सेना माँगने के लिए नही आऊंगा, हाँ जरूरत पड़ेगी, तो विश्वामित्र जी से युद्ध में निर्देश लेता रहूँगा, लेकिन माँगने तो नहीं आऊँगा । उनका अपना आत्मविश्वास इतने गजब का है, वो लक्ष्मण को पूछते हैं. तुम्हें मंजूर है हम बिना सेना के जा रहे हैं, बिना दास दासियों के जा रहे हैं बिना संसाधनों के जा रहे हैं, हम अपना रथ भी लेकर नहीं जा रहे हैं, रथ भी यही छोड़ेंगे, अयोध्या की सीमा खत्म हो जाएगी उसके बाद रथ आगे नहीं जाएगा, पैदल ही जाना पड़ेगा जैसे विश्वामित्र कहेंगे वैसे ही करना पड़ेगा, कंदमूल खाने पड़ेंगे, जंगलों में सोना पड़ेगा, पेड़ के नीचे कुटिया बनानी पड़ेगी, हो सकता है कि बहुत सारे कीड़े-मकोड़े हमें परेशान करें उनके बीच में सुरक्षित रहना पड़ेगा, तैयार हो?
लक्ष्मण - "इसमें पूछने की क्या बात हैं?" तो श्री राम कह रहे हैं कि अभी तक तुमने दुख देखा नहीं है, अभी तो राज महल के सुख में तुम रहे हो, तो वह पूछ रहे हैं लक्ष्मण । लक्ष्मण को कंबन रामायण में जो ऋषि है ना उन्होंने राम के बराबर रखा है मतलब लक्ष्मण बोलते है। रामचरितमानस में लक्ष्मण ज्यादा सुनते हैं । कंब रामायण में लक्ष्मण बोलते हैं। और बराबर बोलते हैं, तो कम्ब रामायण में लक्ष्मण कह रहे हैं कि अच्छा आपने कौन सा दुख देखा है? आपने अभी तक सुख ही सुख देखा है तो मैंने भी देखा है अब आप दुख झेलना शुरू करेंगे मैं भी सीख लूंगा, इसमें कोई मुश्किल नहीं है, चलो! तो दोनों निकलते हैं विश्वामित्र के साथ । विश्वामित्र के साथ रास्ते भर जो संवाद उनका चला है अद्भुत हैं, बहुत ही अद्भुत हैं । विश्वामित्र राम को बहुत सारे प्रश्न करते हैं, और उन प्रश्नों के जो उत्तर देते हैं तो विश्वामित्र कहते हैं कि यह लड़का समय से पहले परिपक्व हो चुका हैं, और भविष्य का चक्रवर्ती सम्राट होने की सभी काबिलियत इसमें है, तो ऐसे बहुत सारे प्रश्न हैं, जो राम और विश्वामित्र के संवाद के रूप में है।
विश्वामित्र - "राम तुम्हें मालूम हैं कि हम कहां जा रहे हैं"?
श्री राम - "हाँ, वहाँ जा रहे हैं, जहाँ आपकी कुटिया बनी हुई है, वहां राक्षस बहुत उत्पात मचा रहे हैं वह आपको यज्ञ नहीं करने दे रहे हैं और आपको यज्ञ करना है क्योंकि यज्ञ आप अपने लिए नहीं कर रहे हैं, समाज के लिए कर रहे हैं, समाज को सुख मिले इसके लिए यज्ञ कर रहे हैं, तो मैं भी समाज का एक अंग हूं, आपके यज्ञ में निर्भिकता आये, वह संपन्न हो ऐसी मेरी इच्छा है, उसमें सहयोग करने जा रहा हूं" ।
विश्वामित्र - "कि तुम जहां जा रहे हो वहां किस तरह के राक्षस रहते हैं, अंदाजा है"?
श्री राम - "अंदाजा तो नहीं है लेकिन देख लूंगा पता चल जाएगा कितने मजबूत हैं? कितने ताकतवर हैं?, उनकी शक्ति कितनी है? मेरी शक्ति कितनी हैं ?
विश्वामित्र - "सेना तो लिया नहीं है हमने, राजा दशरथ तो तैयार थे सेना देने के लिए, पैसा भी लिया नहीं है हमने, दास दासिया लिया नहीं है हमने, मैनेजर लिए नहीं है, तुम्हारे सहयोगी है नहीं, तुम्हारे पास अपना तीर कमान है धनुष हैं, लक्ष्मण के पास इतना है, अब क्या करेंगे वहां"?
श्री राम - "हम जन सेना बनाएंगे, राजा दशरथ की सेना तो दूसरे तरह की है हम तो दूसरे तरह की सेना बनायेगे"
विश्वामित्र - "क्या मानना हैं? राजा दशरथ की सेना कैसी हैं"?
श्री राम - "राजा दशरथ की सेना में जितने भी सैनिक हैं, वे सब वेतन पर काम करने वाले हैं, तो इनकी जो देशभक्ति या स्वामी भक्ति हैं वो वेतन से जुड़़ी हुई हैं, जब तक इन्हें समय से वेतन मिलता रहता हैं, तो इनके मन में देशभक्ति प्रज्वल्लित रहती हैं, यदि 1 महीने भी इनका वेतन ना मिले तो ये सब बिखर जाते हैं, इनमें दम नही हैं । इनकी ताकत से राक्षस समाज का सफाया नही होता" ।
विश्वामित्र - "तुम्हें शक हैं कोई"?
श्री राम - "हाँ बहुत बडा शक हैं, अगर राक्षसों का कोई राजा इनके पास आये, और हमसे ज्यादा, सैलरी ऑफर कर दे तो ये सब चले जायेंगे उनके पास, इन पर भरोसा नहीं हैं मुझे"।
विश्वामित्र - "ऐसा आप किस आधार पर कहते हो"?
श्री राम - "मैं प्रतिदिन इन्हें देखता हूँ अयोध्या में, ब्रह्ममूहर्त में निकलता हूँ, सैनिकों के घर भी जाता हूँ, सेना प्रमुख के यहाँ भी जाकर बैठता हूँ, उनसे जो संवाद होता हैं तो उनसे मुझे समझ आता हैं, कि ये पैसो के लिए लड़ने वाले हैं, इनकी ताकत नहीं हैं, इसलिए मैं तो ऐसे सैनिक तैयार करूगा जो अपने सम्मान व इज्जत के लिए लडेंगें, अपने अस्तित्व के लिए लडेंगे, उनकी ताकत इनसे कई गुनी ज्यादा होगी"। विश्वामित्र -" थोड़ा ओर स्पष्ट करो"
श्री राम - "देखो जंगल में कई लोग रहते हैं,
विश्वामित्र - "कौन लोग रहते हैं?
तो विश्वामित्र भारत के उन जनजातियों के नाम गिना रहे हैं, जो जंगलो में निवास करती हैं। जैसे - गौड, भील, कोल आदि जनजाति, ऐसी 4556 जनजाति है जो शहरों में नही रहती, नगरों में नही रहती, आज हम उन्हें दुर्भाग्य से आदिवासी कहते हैं, राम उन्हें वनजाति के रूप में सम्बोधित करते हैं,
श्री राम - "ये जो 4556 किस्म की जनजातियाँ हैं, इनका राक्षसों से क्या लेना-देना हैं?"
विश्वामित्र समझा रहे हैं कि "राक्षस इन्हीं को परेशान करते हैं इनके घर लूट लेते हैं, इनकी सम्पत्ति लूट लेते हैं, इनके घर की बेटियों को ले जाते हैं, इनकी पत्नियों का शील हरण कर लेते हैं, उनका सम्मान खत्म कर देते हैं, और घरों में आग लगा देते हैं, इनके घरों से पकड़े हुए लोगो को कही दास बनाकर बेच देते हैं, राक्षस इस किस्म के लोग हैं", तो राम कहते हैं, "बस मेरा समाधान हो गया" तो विश्वामित्र पूछते हैं "क्या" तो राम कहते हैं कि "मैं इन्हीं के बीच जाऊँगा, चूंकि राक्षस इनको परेशान कर रहे हैं, चूंकि ये राक्षसों से पीड़ित हैं, चूंकि राक्षसों से बहुत साल से शोषित हैं, इसलिए इनके मन में थोड़ी सी चिंगारी सुलगाऊँगा, ये बहुत बड़े सैनिक बन जायेगे", तो विश्वामित्र कहते हैं कि "राम ये तो सब साधारण लोग हैं", इन जनजाति में कुछ जनजाति ऐसी हैं जो लोहे के औजार बनाती हैं", राम ने कहाँ तब तो बहुत अच्छा हैं, जो लुहारी जानते हैं, वो अस्त्र-शस्त्र भी बना सकते हैं, जिनको कच्चा माल पीटना आता हैं, वो शस्त्रों व अस्त्रों का निर्माण कर लेगें, अब बताओं दूसरे कौन हैं?"
विश्वामित्र - "दूसरी वो जनजातियाँ हैं जो कुम्हारी का काम करती हैं, तीसरी जनजातियाँ बैलगाड़ी बनाने का काम करती हैं, चौथी जनजातियाँ बाँस का काम करती हैं"
श्री राम- "ये जितनी तरह की जनजातियाँ हैं, चूंकि सब कुछ न कुछ काम करते हैं, इसलिए मेरी सेना इन्हीं से बनेगी।"
विश्वामित्र - "अब ये सेना युद्ध कैसे करेगी?"
श्री राम - "ये सेना हर समय युद्ध नही करेगी, ये हर समय अपना काम करेगे, जब युद्ध का समय आयेगा, तो काम छोड़कर, युद्ध के मैदान में लडेगे"
विश्वामित्र - "फिर तो इन्हें विशेष प्रशिक्षण देना पड़ेगा"
श्री राम - "उसकी जिम्मेदारी मैं लेता हूँ, इनको विशेष प्रशिक्षण देना है, इसकी जिम्मेदारी मेरी है।
इस तरह का संवाद करते-करते सीमा समाप्त होती हैं, और विश्वामित्र के स्थान पर आकर टिकते हैं, आते ही मुठभेड होना शुरू हो जाती हैं, और वे वध करना शुरू कर देते हैं, आप जानते हैं, जो सबसे बड़ी राक्षसी का वध किया वो ताड़का हैं, और उस ताड़का का वध करने में सब समझ में आ जाता हैं, कि राक्षसों की राज्य व्यवस्था कैसी हैं, इनकी नीतियाँ कैसी हैं? न्याय कैसे हैं, कानून कैसे है? तो राम और लक्ष्मण एक दूसरे से संवाद करते हैं, तो हम कुछ भी करेंगे, इन राक्षसों का सफाया करेंगे, क्योंकि ये धर्म के विरूद्ध हैं, न्याय के विरूद्ध हैं, तो लक्ष्मण जी पूछते हैं "भइया ये न्याय क्या होता हैं, अन्याय क्या होता हैं?
श्री राम - "जब कोई अपने स्वार्थ को छोड़कर परमार्थ के लिए लड़ता हैं, दूसरों की इज्जत के लिए लड़ता हैं, दूसरों का सम्मान बढ़ाने के लिए लड़ता हैं, दूसरों की रोजीरोटी बचाने के लिए लड़ता हैं, वो सबसे बड़ा न्यायी हैं, और जो दूसरों की परवाह ही नही करता, और अपने ही स्वार्थ में डूबा रहता हैं, उससे ज्यादा अन्यायी दूसरा कोई नही हैं"।
तो
आज के समय में ये परिभाषा बिल्कुल सटीक बैठती हैं । आज कलयुग आ गया है, राम जी का युग चला गया हैं, 5 लाख 23 साल से कुछ ज्यादा समय बीत गया हैं, आज भी यही दिखाई दे रहा हैं इस समाज में जो अपना स्वार्थ छोड़कर समाज के लिए समाजिक लोगों के लिए काम करें वहीं महात्मा गाँधी होता हैं, वही लोकमान्य तिलक होता हैं, वहीं उधम सिंह, भगत सिंह होता हैं, और उन्ही के सामने हम अपना सिर झुकाते हैं, और जो सबकुछ परमार्थ को छोड़कर स्वार्थ में डूबा रहता हैं, वो भले ही हजार करोड़ की सम्पत्ति का मालिक हो, समाज उसको भूल जाता हैं, 10 दिन भी याद नही करता है, हजार करोड़ की सम्पत्ति के मालिक का स्वर्गवास होता हैं, मैं पिछले बीस साल से देख रहा हूँ , 10 दिन के बाद 11वें दिन कोई याद नही करता, फिर याद कराने के लिए अखबारों में, मीडिया में कुछ करोड़ रूपये के विज्ञापन देने पड़ते है, कि हमारे सेठ जी का स्वर्गवास हुआ था, हम उन्हें याद कर रहे हैं, मानो करोड़ो रूपये का विज्ञापन खर्च कर रहे हैं, समाज उनको याद नही करता हैं, महात्मा गाँधी को याद करने के लिए कोई विज्ञापन नही देना पड़ता हैं, भगत सिंह को याद करने के लिए कोई विज्ञापन नही, उधम सिंह को याद करने के लिए कोई विज्ञापन नही लगता, तो राम जी बनाकर गये हैं ये परिभाषा, हमारी नही हैं कि जो दूसरों के लिए लड़ रहा हैं, उनके संघर्ष में हैं, तो वो तो न्याय के रास्ते पर हैं, जो स्वार्थ पर हैं वो अन्याय के रास्ते पर हैं।
तो बात चल रही हैं, कि ये जो रावण हैं वो किस रास्ते पर हैं, तो राम कह रहे हैं निश्चित रूप से अन्याय के रास्ते पर, रावण अपने लिए लड़ रहा हैं, अपनी जाति के लिए लड़ रहा हैं, इसके आगे कुछ नही, तो वो तो अन्याय के रास्ते पर हैं, राक्षस सब अन्याय के रास्ते पर हैं, हम सब न्याय के रास्ते पर इसलिए हैं, क्योंकि हम स्वार्थ को छोड़कर अयोध्या से यहाँ आये हैं, और यहाँ आने के बाद हम जीतेंगे इस युद्ध को, ये मेरा विश्वास हैं, लेकिन अपना राज्य कायम नही करेगे, ये पूरा राज्य इन्हीं को सौपकर चुपचाप यहाँ से निकल जायेगें । लक्ष्मण - "अरे मैं तो ये सोचकर बैठा था कि ये किशकिन्धा का पूरा राज्य हमारा होने वाला हैं"
किशकिन्धा एक बहुत बड़ा वन का क्षेत्र हैं जिसका राजा बहुत दिन तक बालि रहा हैं, बाद में सुग्रीव रहा हैं, और बालि के पहले रावण वहाँ का राजा हैं,
लक्ष्मण - "मैं तो सोच रहा था कि इसे जीतकर ये हमारे अयोध्या का अंग बनेगा"
श्री राम - "लक्ष्मण क्या तुम भी अन्याय के रास्ते पर जाना चाहते हो?"
लक्ष्मण - "हमारे भारत में तो चक्रवती सम्राट वही होता हैं, जो दूसरों के राज्य को जीत लेता हैं" ।
श्री राम - "मैं चक्रवतित्व की परिभाषा बदलना चाहता हूँ, और एक नई परिभाषा गढना चाहता हूँ"
अब देखिये इस बात को, श्री राम से पहले जितने भी राजा हुए, रघु हुए, दिलीप हुए इन सबने चक्रवतित्व की परिभाषा इस प्रकार बनाई हैं, कि किसी राज्य के लिए वो लड़े, जीत लिया, तो राज्य उनके अधीन आया, और इस तरह से रघु चक्रवरती हुए, अज चक्रवती हुए, दीलीप चक्रवती हुए, ये सब दशरथ के पूर्वज हैं, दशरथ के पिता, पितामह सब हैं, तो राम कहते हैं कि मैं अपने कुल में चक्रवतित्व की परिभाषा बदलना चाहता हूँ, और आज से नई परिभाषा गढ़ना चाहता हूँ, कि हम राज्य को जीतेंगे, लेकिन अपने राज्य का अंग नही बनायेंगे, इसी राज्य में से किसी को निकालकर, उसको राजा बनाकर हम वापस अपने घर चले जायेगें ।
लक्ष्मण - "भैया इनमें हैसियत नहीं हैं राजा बनने की"
श्री राम - "तो हम हैसियत पैदा करेंगे, ये तो ठीक हैं, कि इनमें हैसियत नहीं हैं, लेकिन हम हैसियत पैदा करेंगे, इनको ट्रेनिंग देंगे , विचार का प्रशिक्षण, अस्त्र-शस्त्र का प्रशिक्षण, राज्य नीति का प्रशिक्षण ।
हो जायेगें"।
'सब देगें तो राज्य चलाने के लिए भी पर्याप्त
लक्ष्मण "तो ये कौन-सा तंत्र बनेगा?"
श्री राम - "यह गणतंत्र बनेगा, यही प्रजातंत्र बनेगा"
मुझे समझ आता हैं कि प्रजातंत्र के मूल श्री राम ही हैं, उनके पहले इस देश प्रजांत्र कही नही हैं, प्रजातंत्र में आज जो परिभाषा चलती हैं न, लोगो का शासन, लोगो के लिए, लोगो के द्वारा । श्री राम जी ने तो यही सिद्ध कर दिया, वन में गये हैं, और छोटे छोटे राज्य जो राक्षसों के कब्जें में हैं, उनको मुक्त कराया हैं, संहार किया हैं, रावण के सहयोगी राक्षसों का, और अच्छे तरह से किया हैं, जड़-मूल को खत्म कर दिया हैं, लेकिन किसी भी राज्य को अयोध्या में नही मिलाया हैं, हर स्थानीय के किसी एक व्यक्ति को राजा बना दिया हैं, तो गौड जाति का राज्य स्थापित करा दिया, भीलों का राज्य स्थापित करा दिया, कोलो का राज्य स्थापित करा दिया, और वो राज्य हजारो साल तक इस देश में चलता आया, अगर आप गौंड जनजाति या भील जनजाति, या कोल जनजाति के लोगो के बीच में जाकर संवाद करे तो कहते हैं, कि ये राज्य को राम का दिया हुआ हैं, मैं पिछले 4-5 वर्षों में मध्य और दक्षिण भारत में रहने वाली जो जनजातियां हैं, गौंड जनजाति सबसे ज्यादा मध्य भारत में हैं, यो जो मध्य प्रदेश का हिस्सा हैं, थोड़ा महाराष्ट्र का, और बहुत बड़ा आन्ध्र प्रदेश का, यहाँ पर गौड जनजातियों के लोग रहते हैं, कोल जनजाति थोड़ा उससे नीचे हैं, और भील काफी बड़े इलाके में हैं, इन तीनों जनजातियों के बीच में जाकर कई दिन रहा हूँ और उनकी रामकथा सुनी हैं, वो हर बार रामकथा की शुरुआत में कहते हैं, कि हे श्री राम ये राज्य आपका दिया हुआ हैं, हम तो आपके सेवक हैं, जब कम्ब रामायण मैने पढ़ा तो बिल्कुल बात समझ में आयी, वो लक्ष्मण को कह रहे हैं कि राज्य हम जीतेगे, देगे इनको वापस, राजा इन्हीं का होगा, हमारा कोई व्यक्ति राजा बनकर नही बैठेगा, तो राक्षसों से राज्य छीन कर भीलों को, कोलो को, और दूसरी जनजातियों को राजा बनाते हुए चले जाना, ये राम ने चक्रवतित्व की नई परिभाष दी हैं, और इसलिए वे आदर्श और मर्यादा पुरूषोत्तम माने गये हैं । हमारे यहाँ इसके पहले ऐसा कभी हुआ नही, श्री राम जी के पहले का इतिहास जो भी पढा गया या जिसको भी थोड़ी समझ हैं वो ये हैं जिस भी राजा ने दूसरे को जीत लिया, अपने राज्य में उसे मिला लिया, लेकिन श्री राम कहते हैं कि जीता और उसी में से राजा बनाया, फिर ये कहानी का हिस्सा पूरा होता हैं । भगवान श्री राम अच्छे से विश्वामित्र जी का यज्ञ करवा वापस लौटने की तैयारी करते हैं तो विश्वामित्र कहते हैं, देखो ईश्वर की एक इच्छा ओर हैं अभी, एक तो ही गयी, वन में यज्ञ सम्पन्न हो गया, वन के जो मालिक हैं, उनको उनका राज्य मिल गया, अभी दूसरी इच्छा बाकि हैं।
श्री राम - "वो क्या?"
विश्वामित्र - "तुम्हारा विवाह, वो भी ईश्वर की इच्छा से ही निश्चित हैं"
श्री राम - "आपने कहाँ देखा हैं मेरे विवाह के लिए"
विश्वामित्र - "मैने देखा हैं, और तय भी कर लिया, विवाह तुम्हारा वही होना हैं"
फिर राजा जनक की कहानी वे श्री राम को सुनाते हैं, कि एक राजा जनक हैं, उनकी एक पुत्री हैं जिसको उन्होंने उत्पन्न तो नही किया हैं, लेकिन उसको पुत्री की तरह से पाला हैं"
श्री राम - "उन्होंने उत्पन्न नहीं किया, माने उनकी कुल की नहीं हैं, तो कहाँ से मिली"
विश्वामित्र - "खेत में मिली है, तो उसके कुल का पता नहीं हैं, और तुम्हारा विवाह वहीं होना हैं"
श्री राम - "आपने पिताजी से पूछा हैं?
विश्वामित्र - "पूछे या न पूछे ये तो हरि की इच्छा हैं, होना तो वहीं हैं"
श्री राम - "क्या ईश्वर मुझसे दूसरा ऐसा भी कार्य कराना चाहता हैं?"
विश्वामित्र - "जिस कन्या के परिवार का कुछ पता नही, कुल का कुछ पता नहीं, जब तुम उससे विवाह करोगे, और तब उसको जो प्रतिष्ठा मिलेगी तो एक दूसरी मर्यादा बनेगी"
श्री राम - "तो ठीक हैं, आपको ऐसा ही लगता हैं, कि इसमें कोई मर्यादा बन रही हैं मैं तैयार हूँ।
लक्ष्मण - "सोच लो भईया, दूसरा मौका नहीं मिलेगा"
विश्वामित्र - "क्यों नहीं मिलेगा? तुम्हारे पिताजी ने तो तीन-तीन शादियाँ की हैं, तुम चाहों तो दूसरी कर लेना"
श्री राम - "हाँ, लेकिन पिता जी से वो गलती हुई है"
विश्वामित्र- "तुम मानते हो की वो गलती हुई हैं? तो कौशिल्य ही तुम्हारी माँ नही हैं, कैकयी भी हैं, सुमित्रा भी हैं, और तुम ये भी मानते हो की तुम्हारे पिता ने तीन शादियाँ करके गलती की हैं, तो फिर ये कैसे हैं?"
श्री राम - "पिता जी ने शादियाँ कर ली हैं तो मैनें उनको माँ मान लिया हैं लेकिन मेरा मन कहता हैं कि पिता ने ये गलती की हैं"
विश्वामित्र - "तुम्हारें पिता ने कोई गलती नहीं की हैं, तुम्हारें जो दादा-परदादा थे उन्होंने ने भी यही किया हैं और राम का जो वंश हैं जिसको रघु वंश कहते हैं, रघु वंश के सभी राजाओं ने एक से ज्यादा शादियाँ कि हैं"
श्री राम - "गुरुदेव मैं आपके सामने सकल्प करता हूँ कि मैं दूसरी मर्यादा एक पत्नीव्रत की सिद्ध करके रहूँगा"
विश्वामित्र - "कैसे?"
श्री राम - "मैनें अपने महल में देखा हैं, कौशिल्या दशरथ की पहली पत्नी हैं, जैसे ही दूसरी आयी, तो दशरथ के अन्दर कौशिल्या के प्रति उपेक्षा भाव आया, तीसरी आयी तब कौशिल्या व सुमित्रा के प्रति उपेक्षा भाव आया और कैकयी के प्रति समर्पण भाव आया, और उसी समर्पण भाव का परिणाम हैं कि हमारे महल में बहुत कुछ ऐसा हुआ जो होने लायक नही हैं"
विश्वामित्र - "राम तुम समय से पहले परिपक्व हो चुके हो"
श्री राम - "मैं परिपक्व हुआ हूँ, ये तो मैं नही जानता, लेकिन ईश्वर मुझसे बहुत कुछ कहलवाता हैं, मुझे कई बार मालूम नहीं होता मैं क्या कह रहा हूँ"
लक्ष्मण - "यदि श्री राम एक पत्नी व्रत का संकल्प लेते हैं तो मैं आजीवन इनके चरणों की वंदना करूँगा, और मैं ये कहूँगा जोर-जोर कर कि मेरे भाई के चरण मेरे पिता के चरण से ज्यादा पवित्र हैं"
श्री राम - "देख दशरथ पिता हैं" (डाटँते हुए)
लक्ष्मण - "भले ही वो मेरे पिता हैं, लेकिन चरित्र में उतने ऊँचे नहीं हैं, जितने आप हैं, कोई कितना भी महान राजा हो, कितना भी महान सेनापति हो, कोई कितना भी महान करोड़पति हो, कोई कितना भी महान विद्वान हो, यदि उसका चरित्र नही हैं, तो वो कुछ भी नहीं हैं, भारत की भारतीयता तो चरित्र पर जाती हैं, बाकि सब चीजें गूढ हो जाती हैं, यदि आप एक पत्नी व्रत का संकल्प ले रहे हैं, तो आप चरित्र की किसी ऊचाँई की स्थापना करने जा रहे हैं, इसलिए आज से मैं आपके चरणों की वन्दना करने का संकल्प लेता हूँ"
श्री राम- "विश्वामित्र गुरुदेव आप पिताजी को संदेश भेज दीजिए, आप जहाँ कहे, मैं विवाह करने के लिए तैयार हूँ"
विश्वामित्र - "एक बार देख तो लो सीता को"
श्री राम - "देखना क्या हैं, तय हो गया हैं, कि वो बिना किसी कुल की हैं, उसका कोई खानदान नहीं हैं, उसके पिता का पता नहीं, माता का पता नहीं, जनक ने उसको पाला हैं, लेकिन उसके असली माता-पिता का पता नहीं हैं, मेरी भार्या बनेगी तो उसकी सब स्थिति स्पष्ट हो जायेगी, मैं मानता हूँ कि समाज के लिए कोई आदर्श ही बनेगा"
विश्वामित्र - "यदि तुम्हारें पिता को यह सूचना मिलेगी, तो विवाह नहीं होने देगे, क्योंकि जनक से उनकी पुरानी दुश्मनी हैं, कई पीढ़ीयों की हैं"
श्री राम - "तब तो ओर भी अच्छा हैं, ये दुश्मनी का अध्याय ही खत्म हो जायेगा , दोस्ती शुरू हो जायेगी"
विश्वामित्र - "तुम्हें क्यों लगता हैं कि दुश्मनी खत्म हो जानी चाहिए?"
श्री राम - "क्योकि रावण का संहार करना हैं, तो राजा जनक भी चाहिए, दशरथ भी चाहिए, बाकि सब चाहिए, और रावण का अकेला का संहार नही करना हैं, उसकी प्रशासनिक व्यवस्था, उसकी राजनीतिक व्यवस्था का संहार करना हैं, क्योंकि वो स्वार्थ आधारित हैं, हमें परमार्थ आधारित राजनीती स्थापित करनी हैं"
विश्वामित्र - "चलो भाई, जैसी तुम्हारी इच्छा, तुम्हारें पिता को बिना बताये चलते हैं, और पहुँच जाते हैं, राजा जनक के दरबार में"
राजा जनक - "मेरी पुत्री का विवाह मैं तय नही करूँगा, मेरी पुत्र तय करेगी, क्योंकि वो स्वंयबरा हैं, अपने वर को स्वंय चुनेगी, उसमें बहुत सारे सतगुण हैं, और उन्हीं सतगुणों के आधार पर मैं कहता हूँ वो स्वंयबरा हैं"
विश्वामित्र - "ठीक हैं, आप तय कर लो, अपनी पुत्री से पूछ लो"
तो जो धनुष की कहानी हैं, वो कम्ब रामायण में सीता जी की कहानी हैं , सीता जी ने कहाँ - "ठीक हैं ये जो बड़ा धनुष रखा हैं, जो तोड़ दे, मैं तय कर लूँगी"
तो बड़े-बड़े राजा-महाराजा आये हैं, कोई तोड़ नही पाया, और राम जी ने जाकर उसको तोड़ दिया हैं तो सीता जी ने उनको अपना पति मान लिया हैं तो अब वो सीता जी को लेकर घर वापस आते हैं तो दशरथ बहुत परेशान हो जाते हैं कि बिना बिताये इस तरह से विवाह हुआ हैं, तो राम कहते हैं "कि जो भी हुआ हैं ईश्वर की इच्छा से हुआ हैं, इसमें ना आपकी चलेगी, ना मेरी चलेगी"।
फिर कुछ दिन पश्चात वो घटना घटित होती हैं, कि कैकयी दशरथ से कहती हैं, कि अब मुझे वर माँगने दो, अब समय आ गया हैं, कि मेरा पुत्र गरद्दी का अधिकारी बनें, ये मेरी अभीष्ट इच्छा हैं, अब आप राम को वन भेजों और मेरे भरत को गद्दी दिलाओं, दशरथ परेशान हो जाते हैं। लेकिन राम को जब पता चलता हैं तो वे सहज स्वीकार करते हैं और फिर दशरथ से कहते हैं कि इसमें ईश्वर की ही कोई इच्छा हैं, माने हर बार राम जी ईश्वर के प्रति भक्ति ऐसे दिखाते हैं।
आस्थावान व्यक्ति कैसा होता हैं, जो हर परिस्थति में ईश्वर की इच्छा देखता हैं। लक्ष्मण को बहुत गलत लगता हैं, लक्ष्मण विद्रोह करने के लिए तैयार हैं ।
लक्ष्मण - "ऐसे कैसे हो सकता हैं? ये आपका अधिकार हैं, आप बड़े हैं, गद्दी पर आपको ही बैठना हैं, राज्य आपको ही चलाना हैं, नीतियां आपको आती हैं, न्याय अन्याय आप जानते हैं, भरत को तो कोई समझ भी नही हैं, वो जिंदगी भर ननिहाल में रहा हैं, सुखों ही सुखों में रहा हैं, उसने दुख कभी देखा नही हैं, आपने तो दुख का अनुभव किया हैं, इसलिए राजा बनने के अधिकारी तो आप ही हैं"
श्री राम -"नहीं, यदि राजा बनकर मैं यहाँ बैठ गया तो इससे भी बड़े कार्य होने वाले हैं, वे नहीं हो पायेगें, इसलिए वन गमन तो जाना हैं"।
फिर वन गमन जाना तय होता हैं, उनके साथ उनकी भार्या सीता और लक्ष्मण भी जाते हैं, राजा दशरथ कहते हैं कि तुम वन जा रहे हो तो दास-दासियों को साथ लेकर जाओ, हाथीघोड़े लेकर जाओ, धन सम्पत्ति लेकर जाओं, अस्त्र-शस्त्र लेकर जाओं । तब श्री राम कहते हैं कि "नहीं, मैं जहाँ जाऊँगा वही सेना बनाऊँगा, वही के संसाधनों से रहूँगा, मुझे एक साधारण व्यक्ति का जीवन बिताना हैं और मैं सब साधारण व्यक्तियों के बीच साधारण रहूँगा, तो उनमें ज्यादा प्रेरणा पैदा होगी, और शायद वो अपना लक्ष्य हासिल कर सके, एक राजा की हैसियत से जाऊँगा तो मेरे और उनके बीच में दूरी रहेगी, ये दूरी पट नही पाई, तो जो हासिल करना हैं वो मिलेगा नही, और 14 वर्ष का जो उनका वनवास हैं जगहजगह जाना, कंद-मूल खाना, वही कुटिया बनाकर रहना, वही के संसाधनों से जीवन चलाना, सुख में रहना, दुख में रहना, अलग-अलग तरीके से जीवन बिताते हुए, राक्षसों का संहार करते हुए और जनजातियों का राज्य स्थापित कराते हुए, अंत में पहुँचते हैं जब उनकी पत्नी का अपहरण होता हैं, रावण उठाकर ले जाता हैं फिर युद्ध का नाद होता हैं। और युद्ध होता हैं, युद्ध में राम विजयी होते हैं, रावण हारता हैं और विभीषण को लंका का राजा बनाते हैं, विभीषण खुद हैरान हैं कि ये मुझे राजा बना रहे हैं, अब तक सोच कर बैठा था कि राम राजा बनेगे, तो राम कह रहे हैं कि मेरी आज तक की परंपरा नही हैं जिस राज्य को जीता मैं राजा बना, ऐसा हुआ नही, मैनें उसी राज्य के नागरिकों को राजा बनाया, तब विभिषण पूछ लेते हैं, कि मुझे एक जिज्ञासा हैं, कि आपने बाली का संहार किया था और सुग्रीव को राजा बनाया था, आपके यहाँ अन्याय तो नही हैं, अधर्म भी नहीं हैं, क्या बाली का वध न्याय था? तो राम पूछ रहे हैं कि इतने बाद क्यों पूछ रहे हो तुम?
अभी तो सब कहानी खत्म हो गई हैं, तो वह कह रहे हैं कि अभी तक हिम्मत नही पड़ी पूछने
तो वो कह रहे हैं सुग्रीव आपका सहयोगी है और उसके सामने मैं अब यह पूछूं हो जाएगी क्या पता आपके और सुग्रीव के बीच में मनभेद हो जाए हमारा लक्ष्य रावण को खत्म करना है वह आपको पहले पूरा करना था इसलिए मैं प्रश्न पूछ रहा हूं तो राम कहते हैं देखो बाली अधर्मी ही था धर्मी नहीं था।
की।
। मुश्किल
विभीषण कहते हैं की "कहानी सुनाओ"
तो सुग्रीव कहता है, "मैं और बाली सगे भाई थे और भाई हर समय मेरा अपमान करता था बारबार मेरी पत्नी का- अपमान करता था, और मेरी पत्नी का अपमान करना इतना ही नहीं राज्यों के विद्वानों की पत्नियों का भी अपमान करता रहता था, रावण के जैसा बनने की कोशिश करता रहता था, जितना ज्यादा शोषण रावण करता था, वैसा ही वह करता था, जब यह सब कहानी सुनते हैं सुग्रीव के मुंह से तब विभीषण कहते हैं बात तो आपकी सही है, बाली अधर्मी में ही था।
राम कहते हैं "मैंने उसको मारने का संकल्प लिया था लेकिन बाली के लिए नहीं सुग्रीव के लिए अगर सुग्रीव को राजा बनाना है तो बाली को हटाना बहुत आवश्यक था, वरना बाली, सुग्रीव को मार डालता और सुग्रीव अगर मर जाता तो हनुमान के रहने का स्थान नहीं रहता और हनुमान तो भगवान के भेजे हुए कोई दूत है, जिनके हाथों बहुत बड़े काम इस देश में होने वाले हैं। आपको मालूम है कि किशंकिन्धा राज्य का जो मालिक था बाली उसने हैरान कर दिया था कि इनमें से मैं किसी को नहीं रहने दूंगा ना सुग्रीव को, न हनुमान को, न नल और नील को । यह नल नील भी भगवान के भेजे हुए हैं, इनके हाथों कोई विशेष काम होना है, आप जानते हैं अगर बाली के हाथों यह लोग मरे होते तो भारत में बहुत सारे इतिहास लिखने से वंचित हो जाता यदि हनुमान के विषय में हम यह कल्पना करें कि बाली ने उनको मरवा दिया होता, तो हनुमान का जो सबसे बड़ा चरित्र आता है वह यह कि वह भारत के नागरिकों को भारत की जड़ी बूटियों से परिचित कराने वाले आदि वैद्य थे । क्योंकि श्री राम को पता ही नहीं था, जब लक्ष्मण को अचेत स्थिति आई ,तो उन्हें कौन सी जड़ी बूटियां दी जाएगी तो वैद्य सुषेण ने हनुमान जी को समझाया कि हिमालय जाओ और वहां से कुछ जड़ी बूटी ले आओ तो हनुमान जी को लगा इस जड़ी बूटी से काम ना चले तो पूरा पर्वत ही उठा कर ले आए और उन जड़ी बूटियों का परिचय श्री राम को कराया, लक्ष्मण को कराया, और पूरी सेना को कराया", तो राम कहते हैं "यह काम वंचित हो जाता । फिर विभीषण ने नल नील के विषय में पूछा तब श्री राम कहते हैं "नल-नील तो अद्भुत है, इन्होनें सेना को रावण के राज्य में भेजने के लिए पुल बनाया"। अब तक तो सब हम यह मानते थे कि रामचंद्र जो रावण के राज्य में पहुंची उसके लिए कोई पुल बना तो बना होगा हमारे दिमाग में नहीं की सेना
बैठता था कोई कल्पना नहीं आती थी लेकिन अब अमेरिका की सबसे बड़ी संस्था नासा ने उस पुल के चित्र निकाल कर जब सब को दिखाएं और उसकी कार्बन डेटिंग हुई तो पता चला कि वह पुल 5 लाख 13 साल पुराना है और कुछ 100 वर्ष पुराना है और राम से रावण का युद्ध भी उतना ही पुराना है तो सिद्ध हो गया कि यह पुल उनके समय में बना और श्री राम, विभीषण को कह रहे हैं "देखो मुझे नहीं पता यह पुल कैसे बनाया जाता है?
यह नल नील दोनों जानते हैं ,नल और नील दोनों कंस्ट्रक्शन के बहुत बड़े इंजीनियर थे जो पुल बनाया वो पत्थरों का पुल समुंदर के बीच में बनाय उसकी कल्पना भी मुश्किल हैं। समुंद्र में पत्थरों को ले जाने के लिए, नाव में पत्थरों को रखना और नाव में किसी तीर को मार कर उसको डुबो देना यह काम वह कर रहे हैं, भगवान श्री राम के साथ पत्थरों को डुबों-डुबों कर फिर एक ऊंचाई तक लाए, फिर कंस्ट्रक्शन हुआ है और उस पुल का कंस्ट्रक्शन पत्थर और पत्थर को जोड़ने वाले चूने के साथ इतना मजबूत बन गया है कि आज तक वह सुरक्षित है 5 लाख 13 साल पुराना पुल सुरक्षित है जो कभी भारत में नल नील ने भगवान श्रीराम के लिए बनाया था और अब अमेरिका के वैज्ञानिक जानते हैं कि भारत का साइंस और टेक्नोलॉजी बहुत ऊंचे स्तर की रही है वरना कैसे संभव है?
पत्थरों से समुंद्र के बीच में पुल बनाना । नदी के बीच में पुल बनाना तो समझ में आता है, क्योंकि नदी की गहराई निश्चित होती है लेकिन समुंदर की गहराई निश्चित नहीं है कभी कहीं पर 100 किलोमीटर गहरा हो सकता है कभी कहीं 40 किलोमीटर गहरा हो सकता है कभी कहीं 200 किलोमीटर गहरा हो सकता है इतने गहरे समुद्र में पुल बांध दिया और वह पुल के फोटोग्राफ मैंने देखे हैं मेरे पास मेरे कंप्यूटर में वह पड़े हुए हैं बहुत अच्छे से सेव किए हुए हैं, कभी मौका मिला तो प्रोजेक्टर की सहायता से आपको दिखाऊंगा कि कैसे एक पत्थर से दूसरे पत्थर को जोड़ा गया है, उसके अंदर के जो चित्र निकालें हैं पुल के पत्थरों को एक दूसरे से जोड़ा है, बीच में चूना लगाकर । लेकिन पत्थर बिखर ना जाए तो लोहे कील लगी हुई है दोनों तरफ जोड़ों में । यह विज्ञान उस समय था और पुल को
जब ऊपर से देखते हैं सेटेलाइट से जब देखते हैं, तो सेटेलाइट से जो उसके फोटोग्राफ खींचे गए हैं वह शायद दैनिक भास्कर अखबार में तो छप चुके हैं मेरे पास तो उसके ओरिजिनल फोटोग्राफ है और उन फोटोग्राफ को जब हम ऊपर से देखते हैं तो दिखाई देता है कि पुल जेड शेप में बना हुआ है स्टेट लाइन नहीं है, बहुत दिन तक मैं सोचता रहा ऐसी शेप में पुल कैसे बनाया और क्यों बनाया क्या जरूरत थी जैसे आजकल डैम(बाँध) बनाते हैं तो बिल्कुल सीधी लाइन में बनाते हैं, तो शायद भारत की तकनीकी नहीं है सीधी लाइन में पुल बनाया जाए यह यूरोप की टेक्नोलॉजी है। यदि पुल एक सीधी रेखा में होगा तो उस पर पानी का दबाव सबसे ज्यादा पड़ेगा क्योंकि समतल चीज होती है तो उस पर दबाव ज्यादा पड़ता है पानी का दबाव ज्यादा आएगा तो टूट जाएगा । इसलिए 5 लाख 13 साल पहले, नल-नील ने ऐसा पुल बनाया जिस पर पानी का दबाव कम पड़े, उसे एक दूसरे के ऊपर डिसटीब्यूट कर दे इसलिए उसको जेड़ शेप दे दी। आजकल के जो जल विज्ञान के वैज्ञानिक है उनसे मैं कहता हूं जरा ऐसे डिजाइन की कल्पना करो तो वह एक ही शब्द कहते हैं अद्भुत ! वह यह कहते हैं 5 लाख 13 साल पुराने दो व्यक्ति ऐसे हुए जिन्होंने एक कल्पना थी । कि इसका माने कि वे बहुत बड़े वैज्ञानिक रहे होगे, यह तभी हो सकता है, साधारण लोगों के दिमाग में कल्पना कभी नहीं आ सकती कि पानी के प्रेशर को बराबर डिसटीब्यूट करना है और उसमें जेड शेप को देना है ,ताकि वह ज्यादा दिन सुरक्षित रहे पहले जब हम चर्चा करते थे तो कुछ आधुनिक पढ़े लिखे लोगो से सुना है कि भारत बहुत महान था" सुना है, लेकिन इसकी महानता क्या थी? यह अब दिखाई देती है। 5 लाख 13 साल पहले इस तरीके के पुल का डिजाइन कर देना और इतने साल तक
टिके रहना और इसके बीच में कहीं भी टूट-फूट नही, क्रैक नहीं है अब वह तो भला हो दक्षिण भारत के जयललिता का जिसने जिद पकड़ ली थी कि इस पुल को तोड़ ही देना है, क्योंकि यह चेन्नई के रास्ते में आने वाले बड़े जहाजों को रोककर , जहाजों के लिए बाधा डालता है अच्छा हुआ जयललिता अपने पद से निकल गई इसलिए पुल बच गया वरना वह तोड़ने की तैयारी में थी, तो नेता कैसे हैं हमारे? इस से अंदाजा लगा लो और राम के जमाने में कितनी मेहनत से बना होगा उसका अंदाजा लगा लो इस तरह की क्वालिटी और इस तरह के के काम और अब समझ में आता है कि जब पुल सत्य था तो सब कुछ सत्य रहा होगा अब तक हमारे देश में कुछ ऐसे ही इतिहासकार हो गये, जो वामपंथी हैं, वह मानते ही नहीं हैं कि भगवान राम की कहानी सत्य है वे कहते हैं हाइपोथिसिस हैं, हाइपोथिसिस माने कल्पना में गढी हुई बातें, और अभी यह जो पुल का हो जाना और उसी समय का हो जाना जो राम का समय है तो यह सिद्ध कर देता है कि यह सत्य है इसमें काल्पनिक कुछ नहीं है और अगर इसी विषय पर आगे हम खोज करें तो बहुत कुछ ऐसा निकल आएगा क्योंकि वैज्ञानिकों ने अभी यह माना है यह पुल जो नीचे गया है इसके साथ पूरी सभ्यता नीचे गई होगी और यह पुल अकेला ही नीचे नहीं गया होगा हो सकता है लंका भी नीचे चली गई हो उसके साथ मिलकर । द्वारिका के बारे में तो वैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिया है कि द्वारिका तो पूरी समुंदर में समा गई थी जो अभी भी मिलती है समुंदर के नीचे | तो हो सकता है लंका भी चली गई हो, क्योंकि सुनामी आने से पहले मेरी भी कल्पना काम नहीं करती थी, कि यह नीचे गई कैसे होगी लेकिन सुनामी पर मैंने अपनी आंखों से देखा है कि 20 -20 मंजिला बिल्डिंग नीचे चली गई तो यह भी चला गया होगा और पता नहीं पिछले कितने लाख वर्षों में कितनी बार सुनामी आई है, कोई कैलकुलेशन नहीं है । अब डूबी हुई सभ्यता पर कोई काम करें कोई करोड़ों का बजट निकले तो और भी बहुत कुछ निकल आएगा क्योंकि यह पुल अकेले में नहीं है, इस पुल की बहुत विशेषता है नल और नील को राम पूछ रहे है कंब रामायण में, "कि तुम ने पुल निर्माण की जोड़ी बनाई है उसकी डिजाइन दिखाओ" नल-नील- "जो हमने डिजाइन बनाई है वह आपको हम जरूर स्पष्ट करेंगे" तो वह कह रहे हैं "इस पर से अपनी सेना तो जाएगी लेकिन दुश्मन की सेना इधर नहीं आ पाएगी ऐसा डिजाइन हमने बनाया है अपनी सेना तो जाएगी लेकिन दुश्मन की सेना इधर नहीं आ पाएगी" । तो राम पूछ रहे हैं कि "इसमें ऐसी क्या विशेषता है कि दुश्मन की सेना इधर नहीं आ पाएगी तो नलनील- कहते हैं कि अपनी सेना में ज्यादातर बंदर है और बंदर में वजन में बहुत हल्के होते हैं और इनके शरीर का सारा वजन पैरों में नहीं आता है चार पैरों में आता है वह डिसट्रीब्यूट हो जाता है इसलिए इनका जाना तो आसान है और रावण की सेना में सब दो पैरों वाले हैं, हमारी सेना में सब चार पैर वाले हैं। तो यह जो चार पैर वाले हैं इनका चलना बहुत आसान है, यह दो पैर वाले आए तो यह पुल डुबो देगा यह पक्का है, हमने ऐसा डिजाइन किया है, इतने माइक्रो लेवल का डिजाइन करके पुल बनाया है, मैं एक इंजीनियर का विद्यार्थी इसलिए मैं समझ सकता हूं कि चार पैर का जो वजन होता है वह जब डिसट्रीब्यूट होता है, और दो पैरों का जो वजन होता है वह डिस्ट्रीब्यूटर नही होता है, तो धरती पर वजन दो पैरों का ज्यादा होता है चार पैर का बहुत कम, और बंदर दुनिया में बहुत अद्भुत चार पैर वाला है जिसका वजन सबसे कम पड़ता है । बंदर के अलावा जितने भी चार पैर वाले हैं जैसे शेर है चीता है, बब्बर शेर है, जिनमें वजन कई गुना ज्यादा है तो आप कहेंगे कि बंदर का साइज तो बहुत कम है बंदर के बराबर जितने भी जानवर है, उनका भी वजन धरती पर ज्यादा पड़ता है लेकिन बंदर का नहीं पड़ता क्योंकि बंदर पूरा पंजा कभी नहीं रखता है उंगलियों के पोरों से जंप लगाता है,और उसमें लगातार क्षमता है कूदने की ,तो नल नील कहते हैं हमारी सेना में तो वानर ज्यादा है इसलिए चिंता मत करो यह पार जाएंगे लेकिन उधर से आएंये तो डूब जाएंगे, ऐसी डिजाइन हमने तैयार की है"।
श्री राम पूछ रहे हैं "इसकी दूसरी विशेषता बताओ"
नल-नील - "दूसरी विशेषता यह है कि अगर यह पुल बनेगा तो जब तक आप नहीं कहेंगे तब तक यह टूटेगा नहीं तो"
श्री राम - "मेरे कहने से मतलब"
नल-नील - "आपके जो बाण हैं इनमें एक ही बाण ऐसा है जो इसको तोड़ने की शक्ति रखता है बाकी से टूटने वाला नहीं, वह जब तक आप नहीं चलाएंगे तब तक टूटने वाला नहीं" तो पूछ रहे हैं क्यों? तो नल नील कह रहे हैं "हमने जो केमिकल लगाया है इसमें वह एक कैलकुलेशन करके लगाया है कि उसका रिएक्शन राम के बाण से ही हो बाकी किसी बाण से नहीं हो । तो खोज कर ऐसा केमिकल लाए ।
आप जानते हैं कि बाण के सामने जो तीर की नोक होती है उसमें केमिकल लगाकर ही चलाए जाते हैं तो उनको मालूम है कि राम के बाण में किस तरीके के केमिकल है और पुल में किस तरीके के केमिकल इस्तेमाल करने हैं और किस तरीके के नहीं करने हैं, फिर वह कहते हैं कि हां हम इस पुल से जाएंगे और वापस जब आएंगे तो यह कितने दिन टिकने वाला है, तो वह कहते जब तक आप चाहे तब, अगर आप चाहेंगे तो हम लोग लौटने के बाद इसको खत्म कर देंगे, इस तरीके की विशेषताओं वाला पुल बनाकर वह गए हैं। लंका में, और रावण को मार कर लौटे हैं, लौटने के बाद विभीषण को को बात कहकर जा रहे हैं उनमें से एक यह है, कि यह तुम्हारी इच्छा है इस पुल को चाहो तो तुम रखो, चाहो तो इस पुल को तोड़ दो, बाण मेरा यह है जब चाहे जब मेरा स्मरण करके इसको तोड़ दो | विभीषण को राजा बना दिया उसको उसकी गद्दी सौंप दी, अब विदा ले रहे हैं तो विभीषण पूछ रहा है कि "इसको कैसे चलाऊं अपने राज्य को? तो भगवान राम एक ही बात कहते हैं, "देखो, अभी मैंने सत्ता का हस्ताक्षंरण करवाया है, प्रशासन व्यवस्था वही है, जो रावण के जमाने की है, जब तक तुम इस पूरी प्रशासनिक व्यवस्था को नहीं बदलोगे, तो तुम्हारे राज्य की किसी समस्या का समाधान नहीं होगा । ट्रांसफर ऑफ़ पॉवर हुआ है रावण की सत्ता, विभीषण को मिली, लेकिन रावण का राज्य वैसा का वैसा ही है इसके मंत्री, इसके महामंत्री, इसके बाद इसके खजांची, इसके अधिकारी, इसकी सेना, इसका सेनापति , यह सब वैसे के वैसे ही है, अगर तुम चाहो तो इनको बदलो तो तुम्हारे राज्य की समस्याएं हल होगी अगर तुमने इन प्रशासनिक व्यवस्था को नहीं बदला तो एक भी समस्या का समाधान नहीं होगा,और मैं यह कह सकता हूं कि समस्याएं बढ़ेगी, तो वह पूछ रहे हैं कि यह आप कैसे कह रहे हैं? तो उन्होंने कहा कि देखो रावण ने अपना राज्य स्थापित किया उसके आधार पर है धर्म को अधर्म बनाया और धार्मिक कार्य को अधार्मिक बनाकर उसने परिवर्तन करा दिया अगर यही कानून कायदे चलाये गए तो तुम्हारी प्रजा को कोई लाभ नहीं मिलेगा, तुम मजा कर सकते हो लेकिन प्रजा की समस्या वैसे ही रहेगी, अब तुम फैसला करो कि तुम्हें प्रजा का राजा होना है या गद्दी का तो विभीषण कह रहे हैं कि मैं तो प्रजा का राजा होना चाहता हूं, तो राम कह रहे हैं कि सबसे पहला काम करो रावण के बनाये हुए कायदे कानून और नियम सब खत्म करो , जला दो, नए नियम कानून बनाओ और ऐसे नियम कानून बनाओ जो सनातन पर आधारित हो, ऐसा सत्य नहीं जो आज और कल बदल जाए, ऐसा सत्य है जो हजारों साल पहले था हजारों साल रहेगा और राम कहते हैं किसी भी राज्य की सत्ता का हस्तांक्षरण हो और राज्य की व्यवस्था ना बदले तो उस राज्य या उस देश की समस्या का समाधान नहीं होता ।
भारत की समस्याओं को मैं भी इसी तरह देखता हूं अब श्री राम जी की बात करें 15 अगस्त 1947 को भारत में सत्ता का हस्तांतरण हुआ लॉर्ड माउंटबेटन के हाथ से सत्ता निकलकर पंडित जवाहरलाल नेहरू के हाथ में आ गए, बाकी क्या बदला? अंग्रेजों ने भारत का जो लूटमार करने के 34735 कानून बनाए वह सब के सब भारत की आजादी के बाद भी चल रहे हैं, तो श्री राम जी के शब्दों के अनुसार भारत की किसी भी समस्या का समाधान नहीं होगा, क्योंकि व्यवस्था वही है जो रावण के समय थी रावण का समय, माने अंग्रेजों का समय, और रावण का ही राज्य था, एक भी कानून नहीं बदला अंग्रेज माने रावण, मैं बिल्कुल स्पष्ट कह रहा हूं रावण और अंग्रेजों में कोई अंतर नहीं था, तो रावण ने और अंग्रेजो ने जो कानून बनाए सीआरपीसी, सीपीसी, सब के सब वैसे
बनाये इंडियन पुलिस एक्ट, वो वैसा का वैसा ही चल रहा है, अंग्रेजों ने कानून बनाया लैंड रेवेन्यू एक्ट, वैसे ही आज चल रहा है,और अंग्रेजों के बनाए राज्य स्तर पर वह सब कानून वैसे के वैसे ही चल रहे इसलिए भारत की कोई भी समस्या का समाधान आजादी मिलने के 60 साल बाद भी नहीं हो रहा है । गरीबी आजादी के साल में जितनी थी उससे बढ़ी है। कम नहीं हुई। 1947 में हम आजाद हुए तो भारत में चार करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे थे अब सन 2006 में 40 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे है।
वैसे ही चल रहे हैं, अंग्रेजों ने कानून
अब आप कहोगे की जनसंख्या बढ़ गई है जनसंख्या तो बहुत थोड़ी बड़ी है 1947 में हम 34 करोड़ थे अब हम 108 करोड हो गए जनसंख्या पर 3 गुना बढ़ी है और गरीबी 10 गुना बढ़ी है आजादी के साल में हमारे देश में बेरोजगारों की संख्या 2 करोड़ थी अब 2006 में 20 करोड हुई है, तो बेरोजगारी भी बढ़ी है, गरीबी भी बढ़ी है, आजादी के साल में जितना भ्रष्टाचार था उससे हजारों गुना भ्रष्टाचार बढ़ा है, यह हम सब मानते हैं आजादी के साल में जितनी महंगाई थी, उससे हजारों गुणा महंगाई बढ़ी है, आजादी के साल के आंकड़े बताता हूं आजादी के साल में 1 रुपये में 50 किलो गेहूं मिलता था, आज 50 किलो गेहूं 300 रूपये में मिलेगा या 350 रूपये में । आजादी के साल में एक रुपये में 2 किलो शुद्ध गाय का घी मिलता है अब 2 किलो घी ढूंढने जाओ तो 800 रूपये तक से नीचे नहीं मिलेगा मिलावट वाला 400 रूपये का । आजादी के साल में किसी के भी घर में 20 रूपये इकट्ठा हो जाए तो सोना खरीद लेते थे, अब 10 ग्राम सोना खरीदने के लिए कम से कम 10000 रूपये हो तब कल्पना हो सकती हैं, आजादी के साल में किसी भी कर्मचारी की पगार 20 रूपये होती थी तो 12 रूपये में घर का खर्चा चलता था और 8 रूपये बचा लेता था और सुखी रहता था अब आजादी के 50 साल बाद 10000 रूपये महीने की पगार मिल जाए तो भी उसका खर्च नहीं चलता महंगाई बहुत बढ़ी हैं, गरीबी बहुत बढ़ी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार बहुत बढ़ा और आजादी के साल में भारत की सरकार बोलती है 33% भारतीय जमीन पर जंगल था, अब आजादी के 60 साल के बाद 17% पर ही जंगल रह गया, मतलब आधे जंगल खत्म हो गए आजादी के बाद यह सच्चाई के साथ भारत में इंडियन फॉरेस्ट है। फिर भी जंगल साफ होते चले जा रहे हैं, फारेस्ट डिपार्टमेंट है जिस पर करोड़ों रुपए खर्च होते हैं हर साल सरकार के, लेकिन जंगल नहीं बढ़ रहे, कम हो रहे हैं । आजादी के बाद पर्यावरण का प्रदूषण बढ़ा है, आजादी के बाद पानी का प्रदूषण बढ़ा है, आजादी के साल में जो गंगा पथ गामिनी होती थी जिसका गंगाजल पीकर हम पवित्र मानते थे, आज उस गंगा की हालत कही-कही ऐसी है कि आप पानी छूने की हिम्मत ना करें नहाना तो दूर की बात है, इतना मैंला कर दिया, और जमुना तो इतनी मैली हो गई है कि कीचड़ ही कीचड़ पानी
कुछ
है।
नदियों का नाश हुआ है, समुंदरों का नाश हुआ है, आजादी के साल में भारत में लगभग लगभग 6 लाख तालाब और तलैया थे आज आजादी के 60 साल के बाद उसमें आधे से ज्यादा बंद हो गए हैं या सरकारों ने उनकी जमीन हड़प ली है, और बिल्डिंग खड़ी कर दी है, या लैंड माफिया वाले लोगों के अधिकार में वह तालाब चले गए, किसी भी शहर में देख लो एक भी समस्या हल नहीं हो रही है हर समस्या का रूप बढ़ता ही जा रहा है, शायद श्री राम जी जो विभीषण को कह रहे हैं देखो सत्ता हस्ताक्षर मात्र किसी भी राज्य का समाधान नहीं होता व्यवस्था बदलने चाहिए तब राज्य की व्यवस्था समस्या खत्म होती है। यदि श्रीराम से हमने इतना ही सीख लिया होता की सत्ता हस्ताक्षर ही नहीं है व्यवस्था भी बदलो तो शायद भारत की समस्याओं का समाधान 60 साल में हो गया होता और अब श्री राम जी की कथा से बार-बार यह स्पष्ट हो गया है कि भारत की कोई भी समस्या का समाधान करना है तो सत्ता बदलने से नहीं होगा व्यवस्था बदलने से होगा, हम एक पार्टी को चुनकर लाए उसको हटाकर दूसरी लाए, दूसरे को हटाकर तीसरी लाए, तीसरी से चौथी को लाए, कुछ होने वाला नहीं । बड़े-बड़े महान लोगों को प्रधानमंत्री बनाए कुछ फायदा नहीं जब तक व्यवस्था नहीं बदलेगी । कितना भी अच्छा कोई प्रधानमंत्री बिठा दो उसमें से कुछ निकलने वाला नहीं, क्योंकि यह मैंने नहीं कहा लाखों साल पहले श्री राम जी बोलकर गए हैं । रामराज्य की बात हम करें कि रामराज्य स्थापित करना है तो पहला ही सूत्र शुरू होगा कि भारत का व्यवस्था परिवर्तन करना होगा, तब भारत में राम राज्य दिखाई
देता
नहीं
आएगा वरना यह रावण राज यही चलता जाएगा जो अंग्रेजों ने चलाया था अब वही काले अंग्रेज चला रहे हैं बस इतना ही अंतर है, पहले गोरे अंग्रेज चला रहे थे, अब काले अंग्रेज चला रहे हैं, अभी इसके बाद मैं श्री राम जी की कथा में एक ऐसे अंश पर आता हूं जो बीच का अंश है जिसको मैंने बाद के लिए रखा था, राम जी की कथा में एक स्थान पर ऐसा है। जब वह वन चले गए और उनके पिताजी का स्वर्गवास हो गया तो उनके छोटे भाई भरत राम जी के पास आए और उनसे कहे कि चलो भाई वापस आपकी गद्दी, आप संभालो पिता जी का स्वर्गवास हो गया है, तो राम और भरत का संवाद है और मेरा मानना यह है। कि भारत की सभी राम कथाओं का सबसे केंद्रीय स्थान अगर कोई है, तो वह राम भरत संवाद है इसमें आप सब कुछ समझ सकते हैं पूरी दुनिया पूरा ब्रह्मांड पूरी व्यवस्था है, सब इसी में समाहित है भरत राम का संवाद अगर रामचरितमानस में पढ़ना हो तो अयोध्या कांड में है वाल्मीकि रामायण में पढ़ना हो तो वहां भी है, रघुवंशम जो कालिदास की सबसे सुंदर कृति है उसमें एक सर्ग है 12 नंबर का सर्ग, उसमें भरत राम संवाद है और 12वीं सर्ग का एक उपसर्ग है, जिसको श्री कालिदास ने नाम दिया है कश्चित सर्ग अद्भुत है, कंबन रामायण में बहुत विस्तार से है, कालिदास का रघुवंशम बहुत विस्तार से है, राम चरित्र मानस में थोड़ा संक्षेप में है, वाल्मीकि रामायण में थोड़ा विस्तार में है, यह जो सर्ग है बहुत ही अद्भुत है. मैं मानता हूं की राम कथा में इससे अच्छा कोई अंश नहीं है। इसमें राम से मिलने के लिए जब भरत आते हैं, और बताते हैं कि पिताजी की मृत्यु हो गई हैं, राज्य को चलाना मेरे लिए तो मुश्किल हैं, आपको चलना पड़ेगा, तो राम जी उनसे कई प्रश्न पूछ रहे हैं, और सारे प्रश्न हमें बताते हैं कि राम राज्य कैसा होता हैं? और महात्मा गाँधी ने इसी राम-राज्य की बात कही हैं, तो भरत आये, हाल-चाल पूछा, गले लगकर रोये, फिर शान्ति के साथ बैठे हैं भरत। और राम जी का पहला प्रश्न जो भरत से पूछ रहे हैं वो यह कि "तुम जिस राज्य से आये हो आयोध्या का राज्य, तुम कहते हो कि राम का राज्य हैं, मेरा राज्य हैं, तो मैं पूछता हूँ, कि इस राज्य को चलाने के लिए, नीति, नियम, कानून के बारे में मैं प्रश्न करता हूँ, तुम उनका उत्तर 'हाँ में देते हो तो मैं मानूँगा, कि वो राम राज्य हैं और 'ना' में दे रहे तो मैं नही मानता कि वो राम-राज्य हैं।
भरत - "आप प्रश्न पूछिए, जितनी मेरी हैसियत है, क्षमता हैं, मैं दूँगा"
श्री राम - "तुम अपने राज्य के आचार्यों का, गुरूओ का, वैद्यो का, पुरोहितों का, अग्रजों का ऐसा ही सम्मान करते हो, जैसा मैं करता था"?
भरत - "हाँ, मेरी कोशिश तो यही हैं, कि मैं सभी अग्रजों का सम्मान करूँ, मेरी कोशिश तो यही हैं, मैं मेरे गुरुओं का सम्मान करूँ, मैं कोशिश यही करता हूं कि आचार्य का सम्मान करू, लेकिन पुरोहित के बारे में मुझे थोड़ी आशंका रहती है"
श्री राम - "क्यों इसमें आशंका क्या है? पुरोहितो तो कर्मकांड ही कराते हैं, तो तुमने क्या मान लिया वह गुरुओं से नीचे है? क्या वह आचार्यों से कम है"?
भरत - "मेरे मन में कभी कभी ऐसा प्रश्न आता है कि पुरोहितों को इतना ही सम्मान क्यों देना जितना आचार्य को जितना गुरुओं को जितना किसी और, क्योंकि हम मानते हैं। भगवान तो घट-घट में हैं, ईश्वर तो हर कण में व्याप्त है पुरोहित कर्मकांड की तरफ लेकर जाते हैं और तरीके बता देंते है पूजा के, जबकि ईश्वर तो कण-कण में हैं, घट- घट में है, भावना से ईश्वर है, पुरोहिताई में क्या है"?
रामजी का उत्तर सुनिए वह कहते हैं।
श्री राम - "देखो भरत यह पुरोहित तुम्हारे राज्य की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है जरा समझो इस बात को रीड की हड्डी है, पूरी अर्थव्यवस्था इन पुरोहितों के दम से चलती है"
भरत कहते हैं "समझ में नहीं आ रहा" तब राम कह रहे हैं "धर्मस्य मूलम अर्थम, अर्थस्य मूलं कामम" और इसी बात को राम जी के जाने के कुछ लाख साल के बाद चाणक्य बोल कर गए 'धर्मस्य मूलम अर्थम, अर्थस्य मूलं कामम'। पहले मुझे ऐसा लगता था जब तक मैंने कंब रामायण नहीं पढ़ी थी, और यह रघुवंशम नहीं पढ़ी थी तो मैं मानता था धर्मस्य मूलम अर्थम, अर्थस्य मूलं कामम, इसके मूल रचयिता चाणक्य है, जो बड़े अर्थशास्त्री रहे इस देश में । लेकिन अब पता चला है कि चाणक्य से लाखों साल पहले रामचंद्र जी यह कह रहे हैं वह कहते हैं कि अगर तुम्हारी अर्थव्यवस्था मजबूत है तो धर्म मजबूत होगा और अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में पुरोहितों का सबसे बड़ा योगदान है तो फिर भी भरत को समझ में नहीं आ रहा तो रामचंद्र जी और उदाहरण देकर कहते हैं कि "देखो पुरोहित क्या करता है पुरोहित पूजा करता है और पूजा करवाता है किसी कथा की, सत्यनारायण की, जो भी करवाता है, लेकिन एक लिस्ट बनाता है, कि 10 घड़े ले आना एकदम कोरे होने चाहिए, 20 मीटर कपड़ा ले आना एकदम नया होना चाहिए, इतनी चूड़ियां ले आना बिना पहनी हुई होनी चाहिए, 10 किलो घी ले आना, यह सामग्री ले आना, यह ले आना, ऐसा-वैसा कर लेना"। मैंने यह एक रामायण में लिस्ट देखी तो कम से कम 108 थी, राम समझा रहे देखो "जब पूजा भगवान की कराएगा वह तो भावना से भी हो सकती है लेकिन जान पूछ कर वह वही चीजें बताएगा क्योंकि कारीगर जो इन चीजों को बनाएगा वह भी तो चाहिए", उस दिन मेरे समझ में आया श्री राम जी की परिभाषा की पुरोहित मार्केटिंग मैनेजर होते हैं। अब समझ में आया इनसे बड़ा मार्केटिंग मैनेजर कौन होगा? अब देखो वह कह रहे हैं घड़े ले आना कुम्हार का काम बढ़ा कि नहीं, फिर घड़े के ऊपर ढकने के लिए ढक्कन और ले आना, तो कुम्हार का काम और बढ़ा, बिक्री बढ़ी फिर कहते हैं कुल्लड़ ले आना उस पर प्रसाद रखेंगे तो मिट्टी में पवित्रता होती है, पवित्रता तो हर चीजों में होती है लेकिन मिट्टी के नए-नए बर्तन पूजा में लाएगा और ऐसी और सैकड़ों पूजा होती जाएगी तो कुम्हारों का काम जिंदगी भर चलता रहेगा, तो कारीगरों को जिंदा रखना है तो वह पुरोहित ही है वह नए-नए कपड़े मंगाते हैं तो जुलाहो का काम चलेगा, बुनकरों का काम चलेगा, धुनकरो का काम चलेगा, वह बांस मगवायेगा, नया-नया घी मगवाँया जायेगा, जिससे यज्ञ कराना है तो घी बनाने वालों का काम चलेगा, उनकी गाय की संख्या बढ़ेगी क्योंकि घी बिकेगा और घी को जलाकर फेँक देना है ताकि नया घी हमेशा बनता रहेगा", यह बहुत दूर की बात है तो राम जब इस बात को बहुत विस्तार से समझाते हैं, तब भरत कहते हैं, "क्षमा करना भाई मुझे यह समझ में नहीं आता था, अब पता चल गया है कि पुरोहित राज्य व्यवस्था के अर्थ को समझते हैं, इसलिए वह भी आचार्य और गुरुओं के समकक्ष हैं, तो राम कहते हैं "देखो कभी कभी ऐसा हो जाए कि गुरुओं का सम्मान कुछ कम हो या आचार्यों का कम हो जाए लेकिन पुरोहितों का कम नहीं होने देना है, क्योंकि यह है तो राज्य की अर्थव्यवस्था है, अर्थव्यवस्था मजबूत है तो धन टिकेगा, धन टिकेगा तो राज्य बढ़ेगा"। यह प्रसंग हमारी आंखें खोलने वाला है आज तक हमारे देश में पुरोहितों को गाली देने का काम आधुनिक पढ़े-लिखे लोगों ने बहुत किया है कि यह पौंगा है ऐसे शंख बजाते हैं, ऐसे घंटे बजा देते हैं, यहाँ हमको इतना ही दिखाई देता है इसके आगे का कुछ दिखाई नहीं देता, कि वह कितनी बड़ी इकोनॉमी चला रहे हैं और राम आगे का प्रश्न पूछ रहे हैं कि "पुरोहित का सम्मान करो उनका ध्यान रखना कि वे कभी पैसों के लिए कुछ ना करते हो", एक पुरोहित ऐसे आए जो पैसा लेकर पूजा कराते हैं तो राम कि "ऐसा पुरोहित है तो उनका सम्मान करने की जरूरत नहीं है क्योंकि जो ज्यादा पैसा देगा वह उसी का माल की बिक्री बढ़ जाएगी इसलिए पुरोहित उन्हीं का सम्मान करना है, जब पैसा खुद ना लेते हो और कारीगरों का माल भी बिकवाने में मदद करें, तो बिना पैसे लिए जो पूजा कराएं वह पुरोहित है, पैसे लेकर जो कराएं राम उसको अच्छा नहीं मानते तो अगला ही प्रश्न वह कहते हैं कि क्या तुम्हारे राज्य के पुरोहित पैसा लेकर पूजा कराते हैं। अगर कराते हैं तो उनको किनारे रख दो तो भरत कह रहे हैं कि "मैं यहां से लौटकर ऐसे ही व्यवस्था कर लूंगा जो बिना पैसे के पूजा कराएं" तो राम कह रहे हैं कि "पुरोहित को तो जिस घर में पूजा करानी है वहां का पानी भी ग्रहण नहीं करना चाहिए, क्योंकि जो बड़ा काम वह करने जा रहा है और घर का पानी-पीने लगे खाना ही खाना लगे तो लालच भाव आएगा और वह अपनी पुरोहिताई से दूर हो जाएगा अब इसको जरा समझे थोड़े विस्तार में की पुरोहित पूजा कराने वाले के घर खाना ना खाए, पानी ना पिए, अंग्रेजों ने इसी को प्रचार किया है कि छुआछूत मचाते हैं पानी भी नहीं पीते, मूर्ख अंग्रेजों को पता नहीं था कि वह श्रीराम की किसी बात का पालन करते हैं जिसके घर पूजा कराते उसके घर पानी भी नहीं पीना, पानी कहीं और जाकर पीना है। अंग्रेजों ने इसको छुआछूत से जोड़ दिया और हिंदुस्तान के कुछ मूर्ख इतिहासकारों ने उस पर पुस्तकों पर पुस्तक लिख डाली कि ये छुआछूत मचाते हैं, यह तो गरीबों के घर का पानी नहीं पीते, यह तो नीची जाति और उऊंची जाति करते रहते हैं, यह ऊँची-नीची जाति का प्रश्न नहीं, था जिनके घर पूजा कराने गये हैं, वह कोई भी जाति का हो, कोई भी संप्रदाय का हो, वहां पर पानी नहीं पीना है, भोजन नहीं ग्रहण करना है, दक्षिणा नहीं लेनी है, प्रसाद नहीं लेना है, यह श्री राम बोल कर गए तो उनका पालन करते हैं, फिर आगे का प्रश्न वह पूछते हैं "भरत तुम सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठते हो"? तो भरत कहते "हां"
हैं।
श्री राम - "वही काम करते हो जो मैं करता हूं, प्रजा के बीच जाते हो वहां जाकर उनका दुख-दर्द सुनते हो उनका हाल-चाल लेते हो लौट कर आ कर मंत्री मंडल की मीटिंग बुलाकर उसमें बात करते हो या नहीं करते"।
भरत - "हां मैं नियमित रूप से करता हूं लेकिन कोई-कोई दिन प्रमाद आ जाता है मैं सुबह नहीं उठ पाता क्योंकि मेरे कुछ पुराने संस्कार है जो नाना के यहां से आए हैं तो उनके चलते कभी-कभी होता है तो राम कहते हैं "अब तुम राजा हो सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठना बिना अवरोध के प्रजा के बीच जाकर दुख दर्द सुनना" तो श्री राम कहते हैं, "तुम राम राज्य के अधिकारी हो तो राम राज्य की परिभाषा है, कि राजा हमेशा प्रजा के बीच में जाकर दुख-दर्द ले"।
भारत का कौन सा प्रधानमंत्री सुबह-सुबह प्रजा के बीच में जाता है? कोई जो प्रतिदिन प्रजा के बीच जाकर उनका दुख दर्द सुनकर आए, गलती से कोई हेलीकॉप्टर में बैठकर आते हैं तो बाढ़ राहत का काम देखने के लिए, जो दिखाई नहीं देता इतनी ऊंचाई से । अभी मैंने सुना हैं कि राजस्थान में 100 साल का रिकॉर्ड टूटा है बाढ़ का तो यहां के जो राजा है। मुख्यमंत्री वह हेलीकॉप्टर में बैठकर ऐसे-ऐसे स्थानों में गए जहां बाढ़ ही नहीं आई थी, तो पत्रकार को पूछा गया कि तुम भी तो बैठे थे मुख्यमंत्री के साथ, तो कहा कि हां बैठा था, तो तुमने क्यों नहीं बताया, तो उसने कहा जो बताने के लिए कहा गया था उतना ही बताया, तो हमारे मंत्री महोदय, मुख्यमंत्री महोदय, प्रधानमंत्री महोदय, राज्यपाल महोदय, प्रजा के बीच में तो नहीं जाते, वो तो उड़न खटोले पर बैठे रहते हैं कहीं घूम टहल के चक्कर लगाते आ जाते हैं जहाँ बाढ़ राहत का काम होता रहता है। साल भर ऐसे ही चलता रहता है, राम कहते हैं कि "राजा को हमेशा प्रजा के बीच में ब्रह्म मुहूर्त में उठकर जाना चाहिए", कौन प्रधानमंत्री ब्रह्म मुहूर्त में उठता है? हिंदुस्तान का पता नहीं कितने प्रधानमंत्री आए थे, रात भर दारू पीते सुबह उठने का तो प्रश्न ही नहीं है, कितने मुख्यमंत्री है जो दारू में ही डूबे रहते हैं, फिर वह आगे का प्रश्न पूछ रहे हैं कि "तुम तुम्हारे जो एडवाइजर(सलाहकार) है। इनमें से किस पर भरोसा करते हो जो पैसे लेकर काम करते हैं या जो अवैतनिक सेवाएं करते हैं"। एडवाइजर दो तरीके के हैं एक तो वह जिनको पगार देते हैं, एक ऐसे हैं जो बिना पगार के काम करते हैं, तो भरत कहते हैं, "मैं तो ज्यादा भरोसा उन बिना पगार के कार्य करते हैं"। तो श्रीराम कहते हैं कि, "वही सही सलाह देंगे , जो तुमसे धन ले गए या संपत्ति ले गए वह तुम्हारा मूड देखेगे, कि तुम क्या चाहते हो वही बोलेगे।", करता हूं जो
तो आजकल हमारे देश में कोई प्रधानमंत्री अवैतनिक सलाहकार रखता ही नहीं है, सब वैतनिक सलाहकार है, मंत्रियों की सुविधाएं सभी सलाहकारों को है। तो प्रधानमंत्री को ऐसी सलाह देते हैं, जो प्रधानमंत्री चाहते हैं वैसे ही देश चलता है। फिर राम जी आगे कह रहे हैं कि "जब तुम मंत्रिमंडल की बैठक करते हो तो कोई मंत्री ऐसा तो नहीं जो अंदर की बात बाहर जाकर बोलता हो,
तो भरत कह रहे हैं कि "नहीं! मेरे राज्य के मंत्रिमंडल में तो नहीं"। तो राम कहते हैं कि "ध्यान रखना अगर मंत्रिमंडल के अंदर की बात बाहर गई तो राज्य चल नही पायेगा"।
जब हमारे हिंदुस्तान में कैबिनेट की मीटिंग चल रही होती है तो अंदर से कोई आ जाता है और न्यूज़ पेपर वालों को खबर देकर चला जाता है। एकदम से खबर अगले दिन हेड लाइन में आ जाती है, सब एक दूसरे पर आरोप लगाते हैं की खबर कहां से ली हुई? हमें तो नहीं मालूम।
तो राम कहते हैं कि "अंदर के कोई फैसले बाहर लीक होते हैं तो ऐसे मंत्रियों को रखना नहीं तुरंत निकाल कर बाहर कर देना" फिर आगे वह पूछते हैं कि "तुम कभी भी कोई योजना बनाते हो तो धन की व्यवस्था कैसे करते हो? क्या प्रजा
नहीं? कर लगाते हो या अपने राज्य का फालतू खर्च कम करके उससे योजना बनाते हो"?
तो भरत कह रहे हैं कि "मैं कोशिश करता हूं कि मेरे राज्य के फालतू खर्चे कम करके और इसी से प्रजा की भलाई के काम करू, नए टैक्स लगाने में मुझे विश्वास नहीं है, क्योंकि आप मानते हो ज्यादा टैक्स अच्छे नहीं है"।
आजादी के समय में सरकार 12-13 तरह के टैक्स लेती थी, अब आजादी के 60 साल
बाद 63 टैक्स हो चुके हैं और फिर भी वित्त मंत्री का पेट नहीं भरता, हर समय कहते हैं और टैक्स लाओ और टैक्स लाओ, हर दिन उनका स्टेटमेंट होता है, ज्यादा से ज्यादा लोगों को इनकम टैक्स में फंसा दो, 7.5 लाख करोड रुपए हम हर साल टैक्स में भरते हैं, फिर भी सरकार का पेट नहीं भरता।
राम जी कहते हैं कि "फालतू खर्चे कम करो उससे प्रजा का विकास करो ।"
आज की सरकार के 90% खर्च फालतू है, यह सरकार खुद कहती है । फालतू खर्चे माने प्रधानमंत्री की पगार, प्रधानमंत्री का वेतन, प्रधानमंत्री के मंत्रिमंडल का वेतन, राष्ट्रपति का वेतन, मुख्यमंत्रियों का वेतन, राज्यपालों का वेतन, सरकारी अधिकारियों का वेतन, कर्मचारियों का वेतन, जिससे विकास का कोई काम नहीं। हमारी सरकार के कुल खर्च का 90% यही खर्चा है, मात्र 10% खर्चा उपयोग किया जाता है।
राम जी उल्टा कह रहे हैं वह भरत को कह रहे हैं कि "10% खर्चा तो अपना होना चाहिए और 90% खर्चा प्रजा के ऊपर होना चाहिए" ।
अब श्री राम जी की कल्पना में मैं बजट बना रहा हूं राम राज्य का बजट और अगले साल उस पर बात करूंगा, ऐसा बजट होना चाहिए जिसमें 10% खर्चा फालतू का हो, सरकार का हो, बाकी 90% खर्चा विकास पर हो, तो बजट ऐसा होना चाहिए, बजट ऐसा तो नहीं कि उनके राज्य में बचत नहीं होता होगा, तब समझ में आएगा कि राम राज्य का बजट कैसा होगा? फिर वह कहते हैं कि "तुम्हारी जो सुरक्षा व्यवस्था है वह तुम्हारे कुल खर्चे से 15% के ज्यादा नहीं होनी चाहिए, अधिक से अधिक और कम से कम 5% रहना चाहिए फिर वह आगे कह रहे हैं कि "तुम तुम्हारे राज्य के अधिकारियों और मंत्रियों में क्वालिटी देखते हो या चापलूसी गुण देखते हो, या उनकी चापलूसी वह तुम्हारे आगे पीछे हां जी ऊपर टैक्स लगाते हो
है।
हां जी करते घूमते हैं, ऐसे लोगों को मंत्री बनाते हो या जो तुम्हारे गलत को गलत कहे सही को सही कहे और तुम्हें सही सलाह दे ऐसे लोगों को मंत्री बनाते हो?
तो भरत कहते हैं "हां मैं कोशिश तो करता हूं बिना चापलूसी करने वालों को मंत्री बनाता हूं।"
फिर वह आगे पूछ रहे हैं कि "तुम्हारे राज्य में भ्रष्टाचार कितना है"?
तब भरत कह रहे हैं "मेरे राज्य का कुल खर्चा का 1% या उससे कम भ्रष्टाचार है"। तो राम कहते हैं कि "3% से ऊपर नहीं जाना चाहिए अगर गया तो राज्य व्यवस्था पूरी बदलनी पड़ेगी करप्शन है, लेकिन 3% के ऊपर नहीं।" आज हमारे देश में कुल खर्चे का 70% करप्शन है, आज की तारीख में।
फिर राम जी पूछ रहे हैं कि "तुम तुम्हारे राज्य में जो लोग चोरी करते हैं अपराध करते हैं, बेईमानी करते हैं, उनको दण्ड देते हो या नहीं?
तो भरत कहते हैं "दण्ड़ तो देता हूं, लेकिन जेल में देता हूं"।
तो राम
चलना चाहिए"। वह कह रहे हैं जिसको भी दण्ड दो खुले में दो, ताकि प्रजा को मालूम हो कि इस बेईमानी का, इस चोरी का यह दंड हैं, मुकदमा जेल में चलाओ।"
अभी यहां क्या होता है? दण्ड़ जेल में होता है, मुकदमा खुले में चलता है । माने रामराज्य का बिल्कुल उल्टा, रावण राज्य का इंसाफ ।
राम पूछ रहे हैं कि "तुम प्रजा से सुझाव मांगते हो, अपने बारे में या अपने राज्य के बारे में?
तो प्रजा क्या कहती है"?
भरत कहते हैं कि "नियमित रूप से सुझाव लेता हूं"
राम कहते हैं तो "ठीक है! तो फिर वह पूछ रहे हैं तुम तुम्हारे मंत्रियों का ज्यादा समय प्रमाद में मनोरंजन में, या मौज मस्ती में, तौ नहीं बीतता"
भरत कह रहे हैं कि "नहीं! मेरे सब मंत्री मेहनत से काम करते हैं, कोई मनोरंजन नहीं करता, कोई मौज मजा नहीं लेता",
राम जी ने कहा "यह आपके लिए नहीं है, यह प्रजा के लिए है, राजा को नहीं कह रहे हैं, "दण्ड़ जेल में
खुले में मिलना चाहिए, मुकदमा जेल में
करना"।
फिर वह आज हमारे यहां क्या होता है? प्रधानमंत्री महीने-महीने भर की छुट्टी पर चले गए यूरोप के यात्रा पर चले गए, राष्ट्रपति चले गए, मुख्यमंत्री चले गए, राज्यपाल चले गए।
राम जी बोल कर गए कि राजा को नहीं करना यह काम प्रजा करें तो ठीक, राजा तो कर ही नहीं सकता, सोच भी नहीं सकता,
फिर वह आगे प्रश्न पूछ रहे हैं कि "क्या तुम्हारी सेना तुम्हारे पूरे अधिकार में है? क्या तुम्हारी सेना तुम्हारे सभी आदेशों को मानती है? क्या सेना में तुम्हारे यहां कोई विद्रोह तो नहीं है?
तो भरत कहते हैं "नहीं है!"
श्री राम कहते हैं, "फिर तुम निश्चिंत हो सकते हो" ।
फिर श्री राम कहते हैं की सेना में जो सैनिक वीरता दिखाते हैं उनको तुम पुरस्कृत करते हो या नहीं"?
भरत - "हाँ करता हूँ"
श्री राम -
- "तो यह दूसरों के लिए अच्छा है", फिर वो पूछ रहे हैं कि "जब तुम फैसला लेते हो तो तुम्हारे सब मंत्री एकमत होते हैं या नहीं, आम राय होती है या नहीं"। तो भरत कह रहे है, "नहीं! कभी-कभी ऐसा भी होता है, कि 50 मंत्री एक तरफ होते हैं। और 51 एक तरफ, या 49 एक तरफ 51 एक तरफ,
लेता हूं"।
तो राम कहते हैं "यह अच्छा नहीं है, सबको एक राय होना चाहिए, तभी तुम्हारा राज्य ज्यादा दिन तक चल पायेगा"।
हमारी संसद इसी पर चल रही है।
चाहे वह कितना भी सत्य हो। अभी संसद में ज्यादा सांसदों ने कहा "वेतन भक्ते बढ़ाओ", तो बढ़ा दिया, कुछ अल्पसंख्यक थे जिन्होंने मना किया, तो उनकी किसी ने सुना नहीं। राम जी कहते हैं "यह माइनॉरिटी या मैजोरिटी नहीं, एक राय होनी चाहिए, आम राय होनी हेए, और जब तक आमराय नहीं बने, तब तक फैसला मत करो, बार-बार बैठो बारबार बैठो, हमारे यहां प्रजातंत्र के सभी सिद्धांतों को श्री राम जी कह कर चले गए, अब यह हमारा दुर्भाग्य है हमने उनको देखा नहीं, रघुवंशम में बहुत सारे प्रिंसिपल है, हमारी सरकार ने अंग्रेजों की नकल करके पार्लियामेंट्री डेमोक्रेसी लाए, यदि श्री राम की डेमोक्रेसी लाए होती तो सभी शहीदों की आत्मा को शांति मिल गई होती।
ऐसे-ऐसे बहुत अच्छे प्रश्न किए और यह सारे प्रश्नु इतने अद्भुत है, कि एक-एक प्रशन पर मैं आधे घंटे, 1 घंटे बात कर सकता हूं, लेकिन मैं केवल ध्यान में लाना चाहता हूं, कि श्री राम के राज्य की व्यवस्था कैसी है? रामराज्य कैसा है? और रामराज्य कोई कपोल कल्पना नहीं है, ठोस धरातल पर खड़ी हुई एक धारणा है, जिसमें गणतंत्र है प्रजा का, और राम जी यह सब प्रश्नों का उत्तर जब ले लेते हैं, भरत से फिर कहते हैं कि "तुम यह सब कर ही रहे हो तो रामराज्य ही चला रहे हो, मेरे आने की जरूरत नहीं है, तुम जाओ मेरी जरूरत जब पड़ेगी, जब तुम रास्ते से भटक जाओगे तब वह कहते हैं कि "कम से कम अपनी खड़ाऊ तो दे दो, वही लेकर जाता हूं, तो ठीक है ले जाओ, लेकिन विचार यह है, इसके हिसाब से राज्य चलाओ इससे अलग मत चलाओ।
तो गांधीजी बार-बार बार-बार रामराज्य की कल्पना कर रहे हैं तो यही कल्पना कर रहे हैं, मैंने कोशिश किया है कि यह जो रामराज्य की कल्पना छुटी पड़ी है, क्योंकि इस पर बात नहीं हुई है, चर्चा नहीं हुई है, मैंने तो जितने भी राम कथा कहने वाले सब से बात की किसी ने मुझे संतुष्ट नहीं किया, हर जगह निराशा हाथ लगी, और राम के दूसरे दूसरे रूपों की बहुत चर्चा करते हैं, राम बड़े कोमल है, राम बड़े दयालु है, उनकी आंखें बहुत सुंदर है, उनके हाथ बहुत सुंदर है, और अजान बाहू है, इन बातों में घंटो-घंटो निकाल सकते हैं, आपको रुला सकते हैं, आपके साथ वह भी रो सकते हैं, लेकिन राम की जिंदगी का जो असली कर्म है उस पर बात नहीं करते। कई राम कथा सुनाने वालों के यहां मैं चुपचाप बैठा हूं कि अब कहेंगे अब कहेंगे, लेकिन बात ही नहीं आती, भरत राम संवाद की बात आती है, तो राम ने गले से लगा लिया और राम के आंसू बहने लगे भरत के भी आंसू बहने लगे, लेकिन यह जो मूल बात कर रहे हैं यह सब बोल कर जाते हैं, शायद उनके मन में फिर मैं 51 वालों की बात मान
51 कह दे वह कानून जो 49 कहे वह कानून नहीं,
इसको कहने की नैतिकता नहीं हो या हिम्मत नहीं हो, क्योंकि आदमी दूसरे को कहता है, उससे ज्यादा अपने को कहता है, जब मैं बोलता हूं तो मुझे लगता है कि मैं दूसरों से नहीं अपने से बात कर रहा हूं, क्योंकि कोई भी बोलने से पहले आदमी अपने से बोलता है, शायद वह नहीं बोल पाते और मैं पूरी विनम्रता से कहता हूं, आज हिंदुस्तान में जो राम कथा हो रही है और राम की कथा नहीं है, वह व्यापार की कथाएं हैं, उसमें कोई आएगा, आपसे डील करेगा, भैया मुझको इतने लाख चाहिए, आप दे सकते हो तो आप कराओ, आप नहीं दे सकते तो मैं दूसरे से बात करता हूं, यह सुविधाएं चाहिए, यह सुख चाहिए, इतना पैसा चाहिए, इतना चढ़ावा आना चाहिए, उसके बाद ऐसा होना चाहिए, वैसा होना चाहिए, ऐ.सी. होना चाहिए।
फिर रामचंद्र जी के वन गमन की कहानी ऐ.सी. मंच से सुनाएंगे, दुख का पहाड़ टूट पड़ा श्रीराम पर और हम ए.सी. में बैठ कर उनकी कहानी सुनेगे, कि रामचंद्र जी को यह दुख है, कि रामचंद्र जी को वह दुख है, तो मुझे लगता है कि हम रामराज्य की तरफ तो बढ़ नहीं पा रहे
पड़ा है, मेरी ऐसी मान्यता है कि इस देश को रामकथा के व्यवसाय से निकाला जाए और इसको राम के राज्य की तरफ ले जाने वाला कोई प्रेरणा पुंज बनाया जाए। मेरा यह मानना है कि 60 साल से राम कथा सुनने के बाद राम जी का चरित्र प्रवेश नहीं करता है, तो इसको सुनने सुनाने से कोई फायदा नहीं है, और मेरा यह मानना है अगर राम कथा सुनाने से देश रामराज्य की ओर बढ़ने की ओर एक कदम उठता है, तो इसमें बहुत सार्थकता है। तो मैं राम जी की कथा को इस दृष्टि से देखता हूं, कि भारत की आज की सभी समस्याओं का समाधान यह करेगी और इस देश में राम राज्य की स्थापना करेगी, तब जाकर इसकी सार्थकता सिद्ध होगी और शायद राम भी यही चाहते थे। अगर वह व्यवसाय और व्यापार वाले व्यक्ति होते तो यह प्रश्न नहीं पूछते कि तुम ऐसे पुरोहितों को सम्मान नहीं करना, जब पैसे के लिए काम करें उनको बाहर करें, ऐसे ही पुरोहितों का सम्मान करना जो किसी के घर का पानी भी ना पिए निस्वार्थ भाव से काम करें, राम आदर्श बने हैं, मर्यादा पुरुषोत्तम बने हैं, तब जब उन्होंने महल छोड़ा सुख छोड़े हैं और अपनी सुविधाएं छोड़ी, साधारण व्यक्ति के कष्टों को सहकर जीवन का अनुभव किया है, और उनके बीच में से ऐसे-ऐसे लोगों को तपस्वी बनाकर खड़ा किया है, जिन्होंने चक्रवर्ती का पद संभाला है, तब वह मर्यादा पुरुषोत्तम बने जब तक उनका महलों का जीवन है, कोई उनको मर्यादा पुरुषोत्तम नहीं कहता, महल छोड़कर वन में चले गए हैं और आदर्श की स्थापना करने में लगे हुए हैं, तब वह मर्यादा पुरुषोत्तम बने हैं, तो हम मय्यादा पुरुषोत्तम राम की बात करें, उनके रामराज्य की बात करें और कुछ कोशिश करें कि कम से कम कुछ सपना तो देखें इस देश में रामराज्य लाना है, जो हमारे शहीदों का अधूरा है, गांधी जी तो कहते थे कि आजादी के बाद कुछ करना है, तो राम राज्य ही लाएंगे तो मैं मानता हूं कि यदि हम सब मिलकर इस रामराज्य को लाने में थोड़ा भी लग जाए तो कोई मुश्किल नहीं है कि अगले 3-5 वर्षों में राम राज्य नही आयेगा, और इस देश के हर नेता से, प्रधानमंत्री से, मुख्यमंत्री से , राज्यपाल से, एक ही प्रश्न पूछे, तुम राम राज्य के लिए कर क्या रहे हो? रामराज्य में 10% खर्चा फालतू, 90% खर्चा प्रजा के लिए होता हैं, क्या तुम कर रहे हो? नहीं कर रहे हो तो राम की कथा का व्यवसाय जरूर इस देश में चल पड़ा है, धंधा भी चल
छोड़ दो कुर्सी, हम किसी ऐसे को लायेगे, राम-राज्य स्थापित करने में मदद करे, तो मैं मानता हूँ इसको, अभियान के रूप में चलाना हैं, हम लोग कोशिश कर रहे हैं, स्वदेशी अभियान इस देश में चलाने की, लेकिन एक अभियान ऐसा भी चले, जो राम-राज्य की स्थापना इस देश में कराये, मैं राम जी की आखिरी बात आपसे कहता हूँ, जब विभीषण को राम जी राजा बना रहे हैं, सोने की लंका विभीषण को सौंप कर जा रहे हैं, तो विभीषण उनको कहते हैं, कि "आप यही रह सकते हैं, मैं आपके नीचे काम कर सकता हूँ, मुझे कोई तकलीफ नही हैं, आप सम्राट रहे, राजा रहे"।
श्री राम कहते हैं, मेरी जो मातृभूमि हैं, वह स्वर्ग से भी महान हैं, इसलिए मुझे लौटना तो मातृभूमि में हैं, तुम्हारी ये सोने की लंका तुम्हें मुबारक हैं, मेरे लिए तो ये मिट्टी के समान हैं, मेरी तो मातृभूमि स्वर्ग से भी महान हैं, ये बात हम कभी ना भूलें, श्री राम जी की ये बात हमारे हृदय में रहें, हमारी मातृभूमि स्वर्ग से भी महान हैं, अमेरिका, यूरोप चाहे सोने की लकां हो, वो हमारे लिए मिट्टी की धूल के बराबर हैं, यदि ये बात हमें समझ में आ जाये, श्री राम जी की, तो भारत से गये, 2
उनकी बुद्धि और पैसे का सारा उपयोग, इस देश के विकास के लिए हो जायेगा, और ये देश सच में सोने की चिड़िया बन जायेगा, इसी के साथ मैं सबको प्रणाम करता हूँ, और श्री राम आप सभी को ऐसी प्रेरणा दे, हम सब मिलकर उनके राज्य की स्थापना करने में लग जाये।
NRI, एक क्षण में अमेरिका यूरोप छोड़ देगे, और
धन्यवाद
राजीव दीक्षित जी
Abhiraj Singh
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